शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

                                                                         

                                                                       चाचा नेहरू 


एक चचा जिससे आपका कोई रिश्ता नही ना जाति का धर्म का फिर भी सबके प्यारे चाचा एसे चचा होते है सबके गली मोहल्लों मे शायद आप सबके भी मुहल्ले मे कोई ऐसा चेहरा रहा हो , मेरे गाँव मे भी थे मुन्ना चाचा मेरे जैसे तमाम बच्चों को प्यारे थे बड़ों के बीच वो क्या थे कैसे थे इससे किसी को कोई मतलब नही बस वो बच्चों से प्यार करते थे उनसे हंस कर बात करे कभी टॉफी चॉकलेट खिलते यही सब काफी था मुहल्ले के एक मुन्ना को बच्चों का मुन्ना चाचा बनाने के लिए, एक चीज इन चचा लोगो समान है ये ज़्यादातर लिबरल (उदार) होते है, मै मुन्ना चाचा की कोई कहानी नही सुना रहा हूँ, मेरा मानना ये है की बच्चों का चाचा बनना आसान नही है, तो नेहरू की बहुत सी उपलब्धियों से अलग ये एक असाधारण बात ही है की वो बहुत से बच्चों के चाचा थे और बच्चों को उनमे विश्वास,

आज़ाद भारत का प्रधानमंत्री नेहरू को बनना ही था, गांधी के सपनों का भारत जो बनाना था और नेहरू ने उसकी नीव रखी भी हिंदुस्तान को हिंदुस्थान बनने से रोका अगर उस वक़्त गलती से भी सत्ता संघ जैसी की ताकत के हांथ मे जाती तो देश आज पाकिस्तान की तरह अपनी ही आग मे झुलस रहा होता आज वामपंथी कलमे अगर चल रही है तो वो गांधी और नेहरू के ही सेक्युलर सोच का नतीजा है मुझे पता है आज जो सरकार है उसमे नेहरू और उनके विचार प्रासंगिक नही है पर आजादी के बाद अब तक की हर सरकार ने नेहरू की विरासत को बढ़ाने का काम किया है चाहे वो मण्डल के मशीहा वीपी सिंह रहे हो या जनसंघ के बाजपेयी

नेहरू को अनदेखा करने के लिए आजकल कुछ दक्षिणपंथी पटेल और नेहरू को आमने सामने रख कर पटेल के नाम का लोहा जोड़ रहे है, उनका दावा है की नेहरू पटेल को हटा कर सत्ता मे आए थे, इसी का जिक्र करते हुये पटेल ने लिखा था, आज़ादी के समय मंत्री मण्डल स्वरूप मे चर्चा के समय, नेहरू ने पटेल को एक पत्र एक अगस्त १९४७ को लिखा जिसमे नेहरू कहते है " कुछ हद तक औपचरिकताये निभाना जरूरी होने से मै आपको मंत्री मण्डल मे समलित होने के लिए लिख रहा हूँ इस पत्र का कोई महत्व नही है क्यो की आप मंत्री मण्डल के सुदृढ़ स्तम्भ है, जवाब पटेल ने तीन अगस्त को लिखा "एक अगस्त के पत्र के लिए अनेक धन्यवाद । एक दूसरे के प्रति जो हमारा अनुराग व प्रेम रहा है तथा लगभग तीस वर्षों की हमारी अखंड मित्रता है । उसे देखते हुये औपचारिकता का कोई स्थान नही रह जाता । आशा है मेरी बाकी के जीवन की सेवाएँ आपके अधीन रहेंगी । आपको धेय की सिद्धि के लिए मेरी सम्पूर्ण वफादारी और निष्ठा प्राप्त होगी । 
नेहरू की जगह पटेल को प्रधानमंत्री ना बनाने का जितना दुख दक्षिणपंथी और संघ के लोग जताते है , वैसा पटेल नही सोचते थे वो संघ नही गांधी के सपनों के भारत के हिमायती थे

उस वक़्त के आजाद देशों से भारत की तुलना करे तो समझ आएगा नेहरू का योगदान नेहरू राजनैतिक रूप से मुझे बामपंथी ही लगते रहे , जिस वक़्त नेहरू ने सत्ता संभाली देश का बटवारा धार्मिक रूप से हुआ था ऐसे मे लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था को लागू करना इतना आसान नही नही था पर वो साहस नेहरू मे था और उन्होने कर दिखाया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी और अंबेडकर जैसे विचरवान लोगों को साथ लेकर संविधान सभा से संविधान लागू करने का सफर भी साहस भरा था
ऐसे थे चाचा नेहरू बच्चे सबकी मन की बात नही सुनते बच्चों तक पहुचने के लिए एक उदार चेहरे और चरित्र की जरूरत है । ये देश नेहरू के योगदान का ऋणी रहेगा