प्रेमचंद की निर्मला
इंदुमती का नौवां पन्ना
बहुत कुछ बदल रहा था पसन्द नापसंद सब कुछ, अब मै उस दौर मे था जब आप अकेले मे भी बिना आईना देखकर हांथ अपने बालों पर घुमाते है और चेहरा किसी और का नज़र आता है, होता है शायद आपके साथ भी हुआ हो, अब नब्बे के दशक के उदितनारायन, कुमार सानू पसन्द आ रहे थे अकेले बैठे बैठे भी मुसकुराता रहता था, अपने कपड़ों और पहनावे को लेकर तब पहली बार गंभीर हुआ था उसके पहले तो स्लीपर और लोवर मे पूरा इलाहाबाद घूम लेता था कई बार सिनेमा देखने भी लोवर मे ही गया था, इतना कुछ बदल रहा था और मुझे पता नही चला, बस मै भी इन सब बदलावों के साथ बढ़ता जा रहा था जो भी था सब चरम मे था अब किसी का बस नही था उसमे मेरा भी नही अब उपाध्याय की कही बात का भी फर्क नही पड़ता, हाँ अब किताबों के साथ एफ़एम या साउंड धीरे धीरे चलता ही रहता था, किशोर के गाने भी गंभीर हो कर सुने जाते थे,
उस दिन जब ट्रेन चलने लगी तो इंदुमती ने एक प्लास्टिक का थैला पकड़ा दिया, अब ट्रेन चल रही थी तो मैंने ले लिया बिना कुछ पूंछे, पूंछने का कोई मतलब भी नही था जब पहले पूछा था तो बोली थी की कुछ किताबें है, और ड्रेस है जो सिविल लाइंस मे बदलनी है, अब तो समझ आ ही गया था की क्या है बस खोल कर देखने का इंतज़ार था, पर इस बार जितना सोचा था उपहार मे कुछ उससे अधिक ही था कमीज़ अमृता प्रीतम की एक किताब के साथ कार्ड और एक गुलाबी फूल बने कागज़ मे ख़त, अब ख़त को साझा करने का मन नही है, हाँ ख़त मे अमृता प्रीतम की किताब के लिए लिखा था की ये वो पहली कड़ी है जिसने मुझे तुमसे मिलाया ख़त के आख़िर मे एक लाइन थी
"कुछ माहौल जुदा था कुछ अहसास भी जुदा थे
रुका था वक्त भी, जब तुम हमसे दूर जा रहे थे"
ट्रेन अपनी रफ्तार से बढ़ रही थी महानगरी का इलाहाबाद के बाद अगला स्टोपेज मानिकपुर है पर आम तौर पर ये इलाहाबाद मानिकपुर के बीच कई बार रुकती है पर उस दिन शायद वो भी जल्दी मे थी ढाई घंटे के उस सफर मे ना जाने कितनी बार मैंने उस ख़त को पढ़ा, मानिकपुर स्टेशन मे विवेक पहले से ही मेरा इंतजार कर रहा था विवेक मेरा स्कूल के दिनों का साथी था उसके साथ मै सीधे घर पहुंचा मम्मी पापा से मिला बस मन कहीं और था विवेक से भी ज्यादा बात नही कर पा रहा था , विवेक कुछ लप्पू झन्ना टाइप का था जो छीछा लेदर ज्यादा करते है मम्मी खाना दे रहीं थी तभी वो मम्मी से बोला चाची अब इसकी शादी की कुछ सोचो, वो जितना सरलता से ये बात बोल गया मम्मी उतनी ही गंभीर थी इस विषय को लेकर बस पापा थे जो टालते जा रहे थे और पापा ने वही बात शुरू की हमेशा मेरे आने पर होती थी इस बार पापा जी कुछ कड़ाई के साथ बोल रहे थे की तुम करना क्या चाहते हो जिस तरह तुम्हारी पढ़ाई चल रही है मुझे नही लगता की तुम सीपीएमटी निकाल पाओगे बीएमएलटी क्यो नही कर लेते मै बिना कुछ बोले खाना खा रहा था पापा बोले प्रेमचंद पढ़ कर कोई सीपीएमटी का एक्जाम निकाल पाया है तुम सिर्फ वक़्त बरबाद कर रहे हो "तब कुछ बोला नहीं पर कई बार सोचता हूँ की शायद पापा सही थे" पापा अभी कुछ दिन और इलाहाबाद मे हूँ फिर देखता हूँ कह कर खाने की मेज से चुपचाप निकल लिया,
कब जाना है इलाहाबाद मम्मी ने पुंछा, कल सुबह ही निकलूँगा कोचिंग जाना है कह कर विवेक के साथ बाहर निकाल आया और विवेक को गरियाना शुरू कर दिया,विवेक बोला तो बोला भइया का गलत बोले है हम सब समझ गए है कुछ तो गड़बड़ है पहले तो तुम शाम को आए हमे कोई भाव नही दे रहे हो ऊपर से सुबह की गाड़ी से जा भी रहे ई सब का माजरा है । अब बोलो सच बताना कुछ तो है ना, अच्छा नाम तो बता दो कौन है , नही बे कुछ नही है बस मन नही है और कोचिंग भी है तभी जाना पड़ रहा है, ठीक है भाई न बताओ मुझे आना है इलाहाबाद तो सब समझ लूँगा एक दो दिल रुकूँगा भी तुम्हारे पास, विवेक की सिनेमा वाली आदत बहुत खराब थी दिन मे तीन तीन सिनेमा देख लेता था इसी लिए मै उसके साथ नही जा पाता था, विवेक सिगरेट नही पिलाओगे का बे बस बकैती पेल रहे हो ले कर आया हूँ भाई पर पियेंगे कहाँ चल स्टेशन चलते उधर ही कहीं स्टेशन पहुँच कर मैंने सुबह की ट्रेन का पता किया फिर आगे तालाब के पास जा कर दोनों एक ही सिगरेट मे सुट्टा लगाते रहे, मै था तो विवेक के साथ पर अपने को बिलकुल अकेला महसूश का रहा था विवेक को उसके घर छोड़ कर एक बार फिर तालाब के किनारे बैठा रहा जाने कब ये अकेलापन मुझे अच्छा लगने लगा,
रात भर ठीक से सो नही पाया सुबह चार बजे ही स्टेशन पुहुंच गया, उस दिन स्टेशन आम दिनों से ज्यादा ही साफ था कुछ यात्री प्लेटफॉर्म मे सो रहे थे जैसे वो स्टेशन सिर्फ सोने के लिए आए हों मानिकपुर स्टेशन मे बहुत से ऐसे ही रहते है जो सोने ही आते है स्टेशन मे वो अलग अलग तरह के काम करने वाले होते है कुछ ट्रेन मे समान बेचने वाले कुछ समान निकालने वाले कुछ सफाई वाले और इनकी सुरक्षा के लिए पुलिस थाना भी स्टेशन मे है , स्टेशन के होर्डिंग नए हो रहे थे अब मानिकपुर मे भी अँग्रेजी सीखने वाले आ गए थे ये अलग बात थी वो अपनी दुकान मानिकपुर मे खोल नही पाये पर होर्डिंग्स जरूर लटका गए थे, आज ट्रेन का इंतज़ार परेशान कर रहा था और एक वक़्त था जब मै सोचता था ट्रेन छूट जाये और एक दिन घर मे रुक जाऊँ, एक लंबे इंतज़ार के बाद दादर गोरखपुर एक्स्प्रेस प्लेटफॉर्म पर आ गयी मानिकपुर के कुछ उँगलियों मे गिनती भर कुली ट्रेन की तरफ दौड़े इन तमाम दौड़ते भागते लोगों के बीच मै भी अपने लिए खिड़की के पास वाली एक सीट ढूंढ ली, ट्रेन
अब मुझे लेकर दौड़ रही थी शायद उसे भी इलाहाबाद का इंतज़ार था,
इलाहाबाद है ही ऐसा शहर की बस मोहब्बत हो ही जाती है, पुरबिया बोली अवध की तहज़ीब कुछ बुंदेलों की गर्मी सब तो था इलाहाबाद मे चौड़ी सड़के जिन्हे देख कर लगता था की आप लखनऊ मे है, पतली गलियाँ जो इलाहाबाद मे होते आपको बनारस का एहसास करा जाती थी सुबह धुंध भरी हल्की ठंढक के साथ दोपहर मे तपती धूप तो शाम अक्षत यवोना की तरह सामने होती थी, बस एक अनोखे मिज़ाज वाला शहर है इलाहाबाद , गाड़ी इलाहाबाद गऊघाट पुल मे आयी तो मै जैसे नींद से जागा और अपना बैग कंधे पर डाल कर गेट के पास खड़ा हो गया, स्टेशन मे मुझे कोई लेने नही आने वाला था न ही कभी कोई आया था पर इस बार शायद किसी को तलाश कर रहा था,
कमरे का दरवाजा खोल ही रहा था की शुभचिंतक उपाध्याय आ गए जन्मदिवस की बधाई देने लगे और बोले की बहुत बड़े वालों हो मे कल बताया भी नही और निकल लिए चलो आज खाना मेरे साथ ही खा लेना पर शाम को कुछ प्रोग्राम बना लेना बेटा सस्ते मे नही निपटोगे, की चेतावनी के साथ बड़े भइया गये।
शाम को कोचिंग के बाद चौराहे पर चाय पी रहा था सुबह से अब तक कई जगह कमरे की तलाश कर चुका था पर कुछ ठीक समझ नही आया था, तब तक इंदुमती भी आ गयी थी, कब आए हो घर से, इंदुमती ने पुछा सबेरे ही आ गया था भइया एक चाय और दे दो चाय पीते ही मैंने उसे बताया की आज कई जगह कमरे के लिए गया पर कुछ समझ नही आया कटरा मे तो मिल रहा था पर दूर बहुत है, हम समान बदलने के झंझट से बचने के लिए पास मे ही चाहते थे, इंदुमती बोली चलो कोई नही एक दो दिन मे देख लेना कहीं न कहीं मिल ही जाएगा पास रहेगा तो बेहतर ही है, चाय खत्म करके हम किताबों की दुकान मे खड़े थे, कमरे को ले कर बात हो ही रही थी तो मैंने दुकान वाले से पुछा गुरु कोई कमरा तो नही मिल जायेगा यहीं कहीं आस पास दो चाहिये एक ही जगह हम दोनों को चाहिये, दुकान वाला बोला मिल तो जायेगा पर चार पाँच दिन लगेंगे दुकान के ऊपर वाले ही है एक तो खाली है एक खाली होना है जिस दिन हो जाएगा आ जाइए मै आज किराए की बात कर लेता हूँ , आप कल आ जाये बात करा देता हूँ ,
हम वापस अपने लॉज आने लगे इंदुमती बोली रात का खाना बनाओगे या मै ले कर आ जाऊँ नही आज उपाध्याय के साथ खाना है , खाना क्या है उसे लेकर कहीं बाहर जाना है खाने, चलते चलते मैंने इंदुमती से कहा जब तक कमरा बदलते नही है तब तक इस बारे मे किसी से कोई बात ना करना मित्तल साब को तो बता ही दिया होगा, मै कल डॉ साब को बोल दूंगा, इंदुमती बोली तो मेरे साथ कब चलोगे, मै बोला कहाँ चलना है, अभी बर्थडे तो हमने मनाया ही नही और आज तो कुछ ठीक से बात भी नही हो पायी इंदुमती बोली, हो जाएगी वो भी हो जाएगी और मै क्या बताऊंगा राजकुमारी जो बोलेंगी वही होगा तो कल सुबह मिलना फिर बात करते है , अब चलता हूँ उपाध्याय बैठा होगा उसे लेकर जाना है
उपाध्याय रुद्राक्ष की माला और अपनी कुछ पत्थरो वाली अंगूठियाँ उतार कर तैयार थे, चलबों गुरु हाँ भाई चलने के लिए ही तो इंतजार कर रहे थे, मै बोला ई सब का है मे ई माला अंगूठी काहे उतार दिया, अब आज अंडा खाना है तो ई सब थोड़े पहिनेगे उपाध्याय बोला, तुमसे किसने कहा की अंडा खाना है मै तो नही खाता अंडे उपाध्याय ज़ोर से हँसा और कहा अब हमसे ई पंडिताई ना पेलो हम देखे है तुम्हें अंडे की दुकान मे कई बार ऊ मैडम के साथ अब हमहिन मिले है चूतिया बानवेन का , मै उपाध्याय को समझाता रहा की मै नही खाता वो राधा खाती है तो उसी के साथ दुकान मे देखा हो पर वो विश्वास करने के पक्ष मे था ही नही और वो कभी नही माना उसे हमेशा लगता था की मै चुरा कर अंडे खाता हूँ उपाध्याय की पसंद के हिसाब स उस दिन पीएचक्यू के पास एक ढाबे मे खाना खाया उपाध्याय वहाँ भी नाराज़ हुआ जब मै अंडा की जगह अपने लिए कोफ़्ता मंगा लिया खाने के बाद उपाध्याय जी ने प्रेमचंद की निर्मला उपहार मे दी निर्मला मुझे प्रेमचंद की रचनाओ मे सबसे ज्यादा पसंद थी
वापस आ कर कॉफी हाउस मे कॉफी और सिगरेट सुलगाई उपाध्याय थोड़ा गंभीरता के साथ वो लड़की भाई आपके कमरे मे आती है शायद डॉ साब और आंटी जी को ठीक नही लगता मुझसे कहा है की मै आपसे बात कर लूँ और लॉज मे कोई लड़की ना आए ये ध्यान रखे, मैंने कहा परेशान ना हो भाई कल मै बात कर लूँगा डॉ साब से और हो सकेगा तो रूम भी बदल लूँगा फिर हम अपने लॉज चले आए
अगली सुबह इंदुमती लॉज मे फिर आ गयी अब मै उसे मना भी नही कर सकता था, वो आते ही सिर हिला कर पुछा कैसे हो और आंखो और हांथ से इशारा करते हुये चाय के लिए पुछा तो नहीं मे सिर हिला दिया वो बिना कुछ बोले ही चाय का पानी गैस मे रख कर मिल्क पाउडर मिलाने लगी कुछ गुनगुना नही रही थी जब चाय ले आयी तो चाय पीते हुये मैंने पुछा - "तो राजकुमारी कहाँ चलना है कुछ सोचा नही इस बार तुम बताओगे बर्थड़े तुम्हारा था, मै चाय का कप मेज मे रखते हुये बोला मै तो चाहता हूँ की तुम यही रहो और ऐसे ही दिन भर चाय पीते है, इंदुमती ने मेरा सर अपनी गोद मे रख लिया और माथे को चूम कर बोली तो ठीक है खाना भी यहीं बना लूँगी पर कोचिंग तो जाना है ना, अरे राजकुमारी कोई नही फिर कभी अभी रूम तो बदल ले फिर तो रोज तुम्ही को बनाना है , इंदुमती ने मुझे उठा कर बैठा दिया और बोली तो ये बात है मै नही बनाने वाली रोज का खाना हाँ चाय मिल सकती है वो भी कभी कभी चलो ठीक है अभी तो बना लो, वो बोली हाँ वो किताब के दुकान वाले भइया मिले थे तो बोले है की तुम बात कर लो और कल से आ सकते है आप लोग आज वो दूसरा वाला रूम भी खाली हो जाएगा