प्रेम और नफरत
प्रेम और नफरत दोनों जीवन के अभिन्न है। अंतर बहुत छोटा सा होता है प्रेम कब हो जाय पता नही चलता
और नफरत कब और क्यों हुई थी भूलता। प्रेम कब जन्म लेके पनपने लगता है ये पता ही नही चलता जितना आनन्द प्रेम में होने का है उतना ही इसे पड़ने और सुनने में आज सबेरे जब मै घर से आ रहा था तभी एक ऑटो में एक नब्बे के दशक का एक गीत सुनाई दिया " किसी को चाहते रहना कोई खता तो नही खता तो जब है की हम हाले दिल किसी से कहे " प्रेम होता ही ऐसा है कि वो न किसी से कहा जाय और न उसके बिना रहा जाय प्रेम के बिना जीवन की कल्पना ही बेकार है। प्रेम का अपना जादू होता है। अपने तमाम रहस्यों के साथ अपनी ही कल्पनाओं और सुनहरे ख्वाबों क साथ। अपने तमाम दर्द के साथ आनंद में ही रहता है।
प्रेम अपने मतवाले मनोवेग से चलता जैसे दुनिया के सबसे खूबसूरत फूल उसी के पास हों वो अपने आप ही सुन्दर दिल को छूने वाले संगीत के साथ चलता है चिड़ियों चहचाहट नदियों का सुन्दर संगीत सब प्रेम के साथ ही है। प्रेम कि तमाम कवितायेँ सुरीले राग सब सुनाई देते है। इसके विपरीत नफरत में जलन और तपन से अधिक कुछ नही नफरत जहाँ भी होगी वहाँ कुछ बचता ही नही। और प्रेम में उसके सिवा कुछ होता नही