रविवार, 14 सितंबर 2014

                                                                       नॉन वेज ढाबा

                                                                 इंदुमती का छठा पन्ना 


हम सिनेमा मे जब पहुंचे तो हाल मे अंधेरा हो गया था, टार्च वाले भईया ने हमे हमारी सीट तक पहुंचाया राजकरन मे उसी समय कुछ परिवर्तन भी हुये थे । कुर्सियाँ पहले से कुछ नरम हो गयी थी आगे पीछे खिसक भी रही थी इलाहाबाद मे ये सब उपलब्धियों की तरह ही देखा जा सकता था, अब अपने को तो उ सिनेमा मे कोई इन्टरेस्ट था नही तो बस कुर्सी आगे पीछे खिसकाय रहे थे, तभी इंदुमती बोली ये कर रहे हो, तो फिर चुपचाप सीधा बैठा रहा पर मज़ा नही आ रहा था, मेरे साथ कई बार ऐसा होता था की जो फिल्म देखने का मन ना हो और कोई दोस्त ले जाय तो तो अक्सर पहले शो मे ही जाते थे और आराम से पैर फैला कर सोते थे सुबह दस से एक बजे की बिजली कटौती तो तब से आज तक चली आ रही है, फिल्म समाप्त होने के बाद सब चलने लगते तो मुझे भी उठाते और गरियाते हुये ले जाते की जब देखना नही था तो कहे पैसे खराब करने आ गए, ये फिल्म भी कुछ वैसी ही थी आगे क्या होगा ये पहले ही पता था। कहानी ऐसी थी की तीन घंटे बांध ही नही पायी, हाँ एक गीत उस समय सामयिक लगा था " उसे हसना भी होगा उसे भी रोना भी होगा हर दिल जो प्यार करेगा" पर ये उस वक़्त की अपनी एक स्थिति थी फिल्म मे एक गीत था " ऐसा पहली बार हुआ है सतरा अठरा सालों मे" तो इसी गीत के बीच मे ही मै इंदुमती से बोला मै भी अठरा का ही हूँ इंदुमती, चुप रहो मै बीस की हूँ चुपचाप फिल्म देखो इंदुमती बोली, मै बार बार बात करने की कोशिश करता और इंदुमती चुप करा देती, अब तो इंटरवेल का इंतज़ार था और वो इंतज़ार भी खत्म हुआ हाल की लाइट जल गयी कोल्ड ड्रिंक्स, समोसे वालों का आतंक चलने लगा था, जब जेब मे उधर के पैसे हों तो ये सब एक आतंक की तरह ही लगता है , इस आतंक से भी जूझते हुये कोकाकोला और चिप्स का बड़ा पैक ले लिया, कुछ फिल्मों के ट्रेलर के बाद फिल्म फिर शुरू हो गयी तब तक मै भी फिल्म मे कुछ ध्यान देने लगा था परिवार के समागम के साथ फिल्म समाप्त हुई जैसे तमाम भारतीय फिल्मों मे होता है, हाल मे रोशनी हो गयी थी लोग कुर्सियों को अकेला छोड़ कर जा रहे थे पर जैसे उनका अपना बहुत कुछ उसी सिनेमा हाल मे छूट गया हो, सबके साथ होता है शायद आपके साथ भी हुआ हो, जब तक की वो हाल की घुटन से बाहर खुले आसमान के नीचे नही आ जाता। इन्दुमती ने रुकने को कहा बोली की पहले लोगों को निकलने दो फिर चलते है ,
हम हाल के बाहर आकर सुभाष चौराहे पर खड़े थे अब खाना खाने कहाँ चलना है ,मै यही सोच रहा था तभी इन्दुमती बोली कहाँ चल रहे हो , मै बोला अब राजकुमारी बताये कहाँ चलना है , आज नॉन वेज खाने का मन है कही मस्त चिकन मिल जाए पर अब तुम बोलोगे की इन्दुमती मै चिकन नही खाता, मै कुछ बोला नही शायद कुछ सवाल अपने आप से कर रहा था, फिर बोला चलो कहाँ मिलेगा चिकन पता है वहीं चलते है , इन्दुमती बोली तुम भी कहते हो, मै बोला जब अंडे नही खाता तो चिकन कैसे पर वहां कुछ वेज होगा मै वही खा लूंगा मै खाता नही हूँ पर सामने बैठ कर कोई खाए इसमें एतराज़ भी नहीं है। हम सेन्ट्रल बैंक के सामने एक ढाबे मे सड़क किनारे खाने के लिए पहुँच गए।

मै नॉन वेज ढाबे में चला तो गया था पर मेरे मन में तमाम सवाल अब भी थे, इन्दुमती जो खाना चाह रही थी उसका इन्कार मेरे लिए किसी गुनाह से कम नही था और मै पहले कभी ऐसे किसी के साथ खाने के लिए बैठा नही था सरयूपारी गर्ग गोत्र का ब्राह्मण और मांसाहारी भोजनालय में मेरे बाबा जी को पता चलता तो शायद घर परिवार से बेदखल कर देते, फिर सोचता की ये तो प्रकृति का ही खेल है मनुष्य मांसाहार के लिए भी बना है, हमारे यहाँ पुरानी मस्जिद के पास मुल्ला फैजुल्ला रहते थे वो कहा करते थे की मनुष्य के दांतों में कैनाइन (जो कुत्तों में भी होता है) होता है, जो मांसाहार के लिए ही है , तभी तो हम मांसाहारी है, गाय कभी मांस नही खाती ना तो उसके पास वो दांत है ना हो वो मांस खा पाएगी, तो जिसे प्रकृति ने खाने के लिए बनाया तो अगर वो उसका प्रयोग करे तो क्या बुराई है। इसी सब उधेड़ बुन मे लगा था तभी इन्दुमती बोली की कुछ खाने के लिए बोलूं की कही और चले कुछ परेशानी , नही नही मै शाही पनीर रोटी लूंगा तब भी मन में था की अगर मटर पनीर बोलू तो कही नॉन वेज वाली तरी ना डाल दें, इन्दुमती ने ढाबे वाले को खाने का मीनू बता दिया अब हम खाने का इंतज़ार कर रहे थे, इन्दुमती बोली की कुछ पढ़ते भी हो की बस अमृता प्रीतम की पूजा में लगे रहते हो, सीपीएमटी इत्ता आसान नही है, इन्दुमती मुझसे दो साल सीनियर थी और एक बार सीपीएमटी की परीक्षा दे चुकी थी, मैंने कहा कर लेता हूँ, वैसे मेरा डाक्टर वाक़्टर बनने का कोई इरादा नही है, तो का बनना है कुछ तो करना है की नै इंदुमती बोली मै चुप ही रहा शायद मेरे पास कोई जवाब था नही या जो जवाब था वो मै बोलना नही चाहता था,

ढाबे वाले ने खाना लगा दिया एक ही मेज़ पर एक तरफ पनीर और दूसरी तरफ चिकन मैंने अपनी रोटी मक्खन के साथ लाने के लिए बोल दिया और इंदुमती की सादी तंदूर रोटी और खाने लगे इंदुमती चिकन के एक टुकड़े को उठा कर शायद दाँतो से छील रही थी पर मै बाद मे समझा की वो लेग पीस खा रही है ये बाद मे इंदुमती ने ही बताया था तब तक चिकन को लेकर मेरा ज्ञान शून्य था, इंदुमती ने लेग पीस को छीलते हुये जिसे वो खा रही थी बोली की पंडित जी तो हम अब अच्छे दोस्त है ना अब ये नही की तुम कल फिर गायब हो जाओ, मै बिना कुछ बोले खाने पे ही ध्यान दे रहा था खाना खाने के बाद ढाबे वाला पैसे की पर्ची लेकर आया तो मै पैसे देने लगा तो इंदुमती बोली रुको मै देती हूँ ना अब ये पाप तो ना कराओ की पंडित जी से चिकन के पैसे दिलवाए जाएँ , मै दे रही हूँ प्लीज तुम रहने दो यार फिर कभी तुम्हारी मर्जी से भी ,
खाना खा कर अब घर चलना था रात के लगभग साढ़े दस का वक़्त रहा होगा, मै बोला एक सिगरेट हो जाती तो मस्त रहता ना, हुम्म ले लो मुझे तो लेनी नही है पर सिगरेट कोई अच्छी बात नही है वो भी इस उम्र मे इंदुमती बोली, अच्छा दोहरा खा लें ठीक है जो लेना हो लो और अब चलो यहाँ से मै पान वाले के पास जा कर सिगरेट जला ही ली और और वही फूंकने लगा सिगरेट पीते ही कुछ इधर उधर की बाते होती रही तभी इंदुमती ने बताया था की उसके पापा आर्मी के रिटायर्ड अफसर है और माँ गृहणी । वो अकेली है कोई दूसरा भाई बहन नही है, मै सिगरेट फेंक कर हीरोपुक स्टार्ट करने लगा तो इंदुमती बोली पीछे खिसको जी मै चलाती हूँ।

इंदुमती के साथ वहाँ से चला ,इंदुमती कुछ बोल रही थी और मै कोई जवाब नही दे रहा था, बस यूँ ही अंदर तरह तरह के विचार उमड़ रहे थे। इंदुमती फिर कुछ बोली और सीएमपी के सामने वाले डाट पुल से हीरोपुक को बैरहना की तरफ मोड लिया तब मै इंदुमती के कंधे मे हांथ रख कर चेहरा सामने की तरफ किया मै पूछना चाहता था की इधर कहाँ अल्लापुर नहीं चलना पर कुछ पूंछ नही सका या पूंछा ही नही इंदुमती अपने गले मे शायद मेरी सांसों को महसूस कर रही थी और मै उसकी महक़ से पागल हो रहा था ऐसा लग रहा था कि अब ये कभी ना रुके चलती रहे और ऐसे ही उसी महक़ मे डूबा रहूँ, क्या है जी सो रहे हो क्या इंदुमती बोली, नही नही कहाँ चल रही हो घर नही चलना क्या मैने पूंछा तब इंदुमती बोली अभी तक नही बोले तो कुछ देर और चुप बैठे रहो, वैसे भी आज लॉज मे बता के आई हूँ की रात मे देर से आना है शायद बारह भी बज सकते है, बैरहना चौराहे के आगे इसाइयों के कब्रिस्तान के पास हीरोपुक रोक दी आम तौर पर इतनी रात को यहाँ सन्नाटा और डरावना लगता था, वैसे तब तक इंदुमती को भी नही पता था की वहाँ कब्रिस्तान है वो तो नए यमुना पुल मे काम चल रहा था वही देख रही थी, और जब मैने बताया तो बोली की चलो यहाँ से नए पुल की तरफ यहाँ रात मे भी काम होता है क्या ?

यमुना किनारे बैठ रहे यमुना का काला ठहरा हुआ पानी डरा रहा था, इंदुमती ये यमुना का पानी कितना ठहरा हुआ है और गंगा इतना तेज भागती है कि किसी के लिए वक़्त नही है और सब उसी को " माँ " कहते है जो तेज भाग रही है, इंदुमती बोली तुम भी इतना क्यो सोचते हो कभी ये नही सोचा की यमुना का ये आख़री पड़ाव है उसके बाद तो उसका अस्तित्व ही नही है। शायद इसे पता है इसका काला पानी जो गंगा से अलग है कुछ दूर बाद हमेशा के लिए खो जाएगा , और जो बनारस से इलाहाबाद कभी नही आया होगा वो कैसे जानेगा की यमुना मे कितनी गहराई थी वो तो गंगा ही जानता है ना , ये भी बेदना हो सकती है, हुम्म मै बोला पर मुझे यमुना का गंगा से प्रेम इस वेदना से कहीं अधिक लगता है । तभी तो वो अपने अस्तित्व को समाप्त कर हमेशा के लिए गंगा से मिल जाती है और उसी रंग मे खो जाती है , यही प्रेम होता है किसी मे इस तरह डूब जाओ की पता ही ना चले की तुम्हारा भी कोई अस्तित्व रहा होगा तभी संगम होता होगा, इतना कह कर मै वही लेट गया और अपना सर इंदुमती की गोद मे रख दिया, इन्दुमती मेरे माथे मे हांथ फेर रही थी और एक बार अपने होंठो को मेरे माथे के पास लाकर छोड़ दिया जैसे आँखों मे फूँक मार रही हो उसकी गरम गरम सांसे अंदर तक समा गयी और वो महक जैसे मै कभी भुला ही नही, इंदुमती मेरे बालों मे हांथ फेरते हुये बोली तुम ठीक ही कहते हो एक दूसरे मे डूबना ही संगम है, पर इस संगम मे भी एक हमेशा के लिए खो जाता है तो क्या ये प्रेम सही है , ये कैसा प्रेम है जो साथी का अस्तित्व ही समाप्त कर जाये प्रेम तो वो है जहां दोनों आसमान के तारों की तरह टिमटिमाते रहे, अमित तुम समझने की कोशिश किया करो, यमुना को गंगा मे मिल कर हमेशा के लिए इलाहाबाद मे समाप्त होना है ये उसका भाग्य है , गंगा के लिए प्रेम नही,

रात के बारह बज रहे होंगे शहर भी धीरे धीर खामोश हो रहा था, मै इंदुमती से बोला अब चलना चाहिए इस बार फिर हीरोपुक इंदुमती को ही चलाने को दे दिया और पीछे बैठ कर सोहबतियाबाग होते हुये नेताचौराहे पहुंचे और इंदुमती को उसके घर के सामने छोड़कर चलने लगा तो इंदुमती बोली अब दो को चलते है दो सितंबर को तुम्हारा बर्थड़े है ना, हुम्म तुमहे याद है मै बोला अच्छा चलो गुडनाइट कल मिलेंगे तब बात करते है , कह कर मै चलने लगा , पर सच तो ये था की मै राधा को छोड़ कर जाना ही नही चाहता था....................
क्रमशः......................

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