शनिवार, 30 अगस्त 2014

                                                                      कम्पनी बाग

                                                              इंदुमती  की चौथी किस्त

उस दिन कंपनी बाग हम दोनों के बीच तमाम अलिखित अनबोले शब्दों का साक्षी बना था, कंपनी बाग आज भी इलाहाबाद मे एक लंबे इतिहास का साक्षी ही तो है, रोज जाने कितने लोग है जो वहाँ टहलने जाते है और बिना कंपनी से पूछे ही वापस हो लेते है, कितना कुछ है जो उसके सीने मे दफन है, कभी पूछिएगा उससे उसका दर्द उसका इतिहास बहुत कुछ बताता भी है । कंपनी बाग आज़ाद से लेकर आज तक बहुत से ऐसे विषय है जिनके विषय मे सिर्फ सच उसी को पता है, तो आज हमने उसी को साक्षी बना लिया था।

बात करते करते काफी वक़्त गुजर गया था यही कोई चार या पाँच का वक़्त हो रहा होगा, इंदुमति अल्लापुर चलने के लिए बोल रही थी पर मै था की वही पसरा रहा मेरा कहीं जाने का मन ही नही हो रहा था, आसमान मे काले बादल छा रहे थे, बहुत खुशनुमा मौसम था घास का लंबा चौड़ा मैदान घने पेड़ों की छाव जो अब धीरे धीर फैल रही थी पता ही नही चल रहा था की पेड़ अपनी छाया बड़ा कर हम दोनों को पास लाना चाह रहे थे की बादल हर तरफ अंधेरा करके फिर हमे दूर करने की चाले चल रहा था, पर मै बस इंदुमति चेहरे से नज़र नही हटाना चाहता था, इंदुमति इस बार चलने के लिए खड़ी होती हुई और मेरे नजदीक आकर बोली चलो अमित चलना है की नही, मै एकटक उसे देखता रहा और जब वो मेरे क़रीब आ गयी तो इंदुमति का हांथ पकड़ कर मैंने उसे बैठने को कहा इंदुमति मेरे पास ही बैठ गयी, बोले क्या है चलो न देर हो रही है, मै इंदुमति को देखता रहा और
"गुनाहों के देवता की एक लाइन" बोला मेरी इंदुमति,

"बादशाहों की मुअत्तर ख्वाबगाहों मे कहाँ
वो मज़ा जो भीगी भीगी घास मे सोने मे है"।
"मुतमइन बेफिक्र लोगों की हंसी मे भी कहाँ
लुफ्त जो एक दूसरे को देखकर रोने मे है"।।

इंदुमति चुप सी हो गयी कुछ देर के लिए एक गहरी खामोशी हुई हवाओ की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी, बीच बीच मे शाम को टहलने वालो के क़दमो की आवाज़ उस खामोशी को तोड़ जाती और इंदुमति सपनीली मुस्कुराहट के साथ बादलों को देख रही थी, इंदुमति मेरी राजकुमारी

"कैफ बरदोश, बादलों को ना देख,
बेखबर तू न कुचल जाय कहीं"।

फिर इंदुमति उसी ख़ामोशी के साथ मेरी तरफ मुखातिब हुई, और जैसे हम एक दूसरे की आंखो मे कुछ ढूंढ रहे थे, और आज ही जान लेना चाहते थे की आने वाला वक़्त क्या होगा ?, इंदुमति कुछ देर तक वैसे ही देखती रही फिर थोड़ा पीछे जा कर बेतरीबी से वही घास मे लेट गयी और हम बिना कुछ बोले ही कुछ एक दूसरे से कहते रहे, लाइट जल चुकी थी शाम के सात बजे रहे होंगे, हम दोनों नाजरेथ अस्पताल के सामने वाले गेट से निकले वहाँ रिक्शा आसानी से मिल जाता था।

हम अल्लापुर आ गए चौराहे मे चाय पी इंदुमति ने अंडे लिए तब तक मै भी अपने लिए सब्जी ले चुका था, इंदुमति भी सब्जी की दुकान मे आ कर सब्जियाँ लेने लगी सब्जी लेकर हम अपने अपने आशियाने के लिए चल दिये, पर मेरा मन इंदुमति से दूर होने का नही था, पर जाना तो था ही
भारी कदमों से लॉज की सीढ़ियाँ चढ़ता गया, ऐसा लग रहा था जैसे अपना गाँव छोड़ कर पहली बार कही दूर जा रहा हूँ ।

कमरे मे लेटा हुआ मस्तिस्क और दिल के द्वंद से जूझ रहा था। मै खुद नही जान पा रहा था की मै चाहता क्या हूँ, और कहाँ जाने को तैयार हूँ, इसी बीच उपाध्याय अपने चिरपरिचित अंदाज़ मे 'कस मे खाना खाबों की कुंभकरन के नै फैले रहबों' मेरा आज उपाध्याय के किसी सवाल का जवाब देने का मन नही था । पर मै ऐसा कर ही नही सकता था उपाध्याय भी महारथी था जब तक उठ ना जाऊँ और इसी महारथी की वजह से मै कई बार खाली पेट सोने से बच जाता था। उपाध्याय था बहुत कलाकार हमेशा बर्तन मुझी से साफ करवाता था, बर्तन तो किसी तरह साफ कर ही लेता पर खाना बनाने से बचता रहता था, उपाध्याय जौनपुर के किसी गाँव का खाँटी पुरबिया था। हाँ वो ये बताना कभी नही भूलता था की उसका गाँव उसी गाँव के पास है जहां "नदिया के पार" सिनेमा की शूटिंग हुयी थी, उपाध्याय को किताबों से कोई खास लगाव नही था वो वही पढ़ता था जिसे पढ़ने के लिए वो इलाहाबाद आया था इसके बाद भी एक उपन्यास उसके पास था "कोहबर की शर्त" तभी मुझे पता चला था की नदिया के पार फिल्म का यही आधार था, ये अलग बात है की उस किताब को मै आज तक पढ़ नही पाया। उपाध्याय रात मे किताब पढ़ने को देता और सुबह जब मै नहाने जाता तो इसी बीच वो अपनी किताब ले जाता, ख़ैर आज याद आई है, तो अब पढ़ लेंगे।

उस दिन खाना खाने के बाद, रेणु के "कितने चौराहे" मे उलझ गया आज़ादी के आस पास का बिहार जब गाँव से शहर के बीच का मानो भाव बस वो किताब ऐसी मिली की काफी सारे द्वंद रेणु के चक्रव्यूह मे फंस कर रह गए। अब मन मे किताब को लेकर उत्सुकता बढ रही थी की अचानक बिजली चली गयी शाम को मामूली बूँदा बाँदी भी हो गयी थी तो थोड़ा उमस बड़ी थी, बिजली के इंतज़ार मे काफी देर तक कमरे मे ही पसरा रहा, बालकनी से लड़को की आवाज़े आ रही थी सब अपने अपने कमरों से बाहर आ चुके थे, मेरे जैसे कुछ ही काहिल किस्म के रहे होंगे जो इतनी गर्मी मे भी कमरे से बाहर नही निकलते, तभी राजू ने आवाज लगाई अरे सर जी बाहर आइये देखिये एकदम मस्त हवा चल रही है, "राजू वर्मा चंदौली का था उसके पिता जी कृषि विभाग मे अफसर थे जब वो इन्हे पहली बार यहाँ छोड़ने आए थे तब मेरी मुलाकात हुयी थी उनसे" राजू के बुलाने पर लगा की काहिलपन छोड़ कर बाहर जाना चाहिए प्राकृतिक हवा का भी आनन्द लिया जाय किताब पढ़ने से उस हवा को नही समझा जा सकता,

बाहर सब कोई न कोई चुटकुला या कोई घटना इन्ही सब मे लगे रहे मै भी उपाध्याय जी से पूर्वाञ्चल की दबंगई की तमाम कहानियाँ सुनता रहा। मामला तो कई बार ऐसा हुआ की अजय रॉय, मुख्तार, शाहबूद्दीन, सब कहीं ना कहीं हमारे उपाध्याय जी के कृपा के पात्र थे इन सब का जीवन बचाने वाला और कोई नही हमारे पुरबिया उपाध्याय जी ही थे, माफ़िया को लेकर मेरा काफी ज्ञानवर्धन होता रहा

अगस्त की वो शाम बहुत भारी लग रही थी दोपहर मे झमाझम बारिश के बाद भी गर्मी अपने शबाब पर थी । उदास सी शाम थी क्षितिज की लाली भी स्याह होने लगी थी बादल सांस रोके पड़े थे जो तारे टिमटिमाने के लिए बेताब थे उनका भी दम काले बादलों के डर से घुट रहा था, आज समझ आ रहा था की पंछी कितने आज़ाद होते है कही भी जा कर किसी भी छत पे बैठ सकते है पर मै तो इंदुमति से मिलने उसके लॉज भी नही जा सकता था वहाँ आने के लिए भी उसने मना किया था बोला था जब कोई जरूरी काम हो तभी आना अब कैसे कहता की दो दिन से तुम्हें देखा नही है और दो दिन ना तो सब्जी लेने आती है और कोचिंग का वक़्त ऐसा था की उसी टाइम मुझे भी अपनी कोचिग जाना पड़ता था यही सब सोच रहा था की अगर आज नही आती तो घर जा कर ही मिलने के लिए बोल दूँगा, और कहूँगा की सब्जी रोज लिया करो बासी खा कर बीमार हो जाओगी, इतवार को फ़िल्म देखने तो जाना है कौन सी और कितने समय कुछ बताया नही है फिर बाद मे आंखे दिखायेगी ये नही वो वाली देखनी थी, यही सब सोचते हुये सिगरेट सुलगा रहा था, जैसे ही सिगरेट फेंकने के लिये पीछे मुड़ा तो देखा की राधा किताबों की दुकान मे कुछ ले रही थी, मै पास जाकर धीरे से बुलाया "इंदुमति इंदुमति"

राधा ने पलटते ही कहा सिगरेट खत्म हो गयी, तुम भी अंडे नही खाते सिगरेट पीते हो, अरे छोड़ो भी राजकुमारी अब ये बताओ पिछले दो तीन दिन से दिखी नही क्या कोई परेशानी है, राधा ने ना मे सिर हिला दिया और चाय की दुकान की तरफ बढ गयी मै भी उसके साथ चल दिया, चाय पीते पीते सिनेमा जाने के लिए बात करने लगा अब फिल्म को लेकर दोनों मे टकराव जैसी स्थिति बन सकती थी अगर मै उसकी बात न मानता, मुझे लग रहा था की सतीश कौशिक की "हमारा दिल आपके पास है" देखे उसे ना देखने के उसके पास दो बहाने थे एक तो उसे यह फिल्म से सीरियस फिल्म लग रही थी दूसरी की इसके लिए संगीत सिनेमा मुट्ठीगंज जाना पड़ता, तो उसका जो विकल्प था वो मै नही देखना चाहता था पर देखना पड़ा, इंदुमति के आदेशनुसार हमे सिविल लाइंस राजकरन टाकीज़ मे "हर दिल जो प्यार करेगा" देखनी थी और वहीं खाना खा कर आना है, अब इसके लिए अगर कोई बाइक मिल जाएगी तो सब सही हो जाता,,,,,,,,,

क्रमशः

शनिवार, 23 अगस्त 2014

                                                              कुछ जोगाड़ कर देव यार

                                                              इंदुमती  की तीसरी क़िस्त 

फ्रेंडशिपडे के बाद मैने फिर रूम से निकलना बंद कर दिया था। एक अजीब सा डर जो सिर्फ महसूस किया जा सकता "जैसे आप किसी की कोई चीज चुरा रहे हों और वो देख कर अनदेखा कर जाय और आपसे कुछ न बोले'" कई बार मन करता की कोई किताब ले आऊँ शाम की चाय भी बंद थी सब्जी भी उपाध्याय ही लाता था । बस कमरे मे पड़ा रहता था उपाध्याय को लगता की आज कल कुछ ज्यादा ही काहिल हुआ जा रहा हूँ उसी का बनाया खाना भी खाता हूँ और रौब भी गांढता हूँ , अब कई दिन हो चुके थे इस बार इंदुमति भी एक भी दिन नही आई ना ही खाना भिजवाया।
एक हफ्ते तक कमरे मे रहने के बाद इतवार को शिवकुटी जाना था, वहाँ "धर्मवीर भारती फैंसक्लब" की बैठक थी ये क्लब हमही कुछ दोस्तो ने मिलकर बनाया था जिसके दस नियमित सदस्य बाकी की संख्या घटती बढ़ती रहती थी आम तौर पर पंद्रह से बीस सदस्य रहते थे जो प्रतिमाह 20/- की शुल्क जमा करते थे और उन रुपयों से किताबे आती थी तो सभी कितबिया चरसी उसे पड़ते थे अब किताबे थोड़ा महंगी थी तो ये तरीका निकाला था क्लब की शुरवात मै और आशीष ने की थी बाद मे और लोग मिलते गए वैसे क्लब का एक उद्देश्य और भी था वो की हम सभी पाठक के साथ लेखक बनने के लिय भी उत्साहित रहते थे । तो जो भी उल्टी सीधी कविताए कहानियाँ लिखते तो वो भी वहाँ सुनाई जाती, और सभी को एक स्वर मे तारीफ करनी पड़ती चाहे बाद मे लाख कमियाँ निकले या निकाली जाए ।
शिवकुटी वाली बैठक मे भी जाने का मन नही था पर सोचा की इलाहाबाद मे रह कर अगर नही जाता तो भी ठीक नही है, और जाने का एक फायदा ये भी है की कुछ नया मिल जाएगा पिछली बैठक मे ही रेणु का उपन्यास ""कितने चौराहे"" मंगाया गया था तो उसे अभिषेक ने ले लिया था, अभिषेक विश्वविध्यालय का छात्र था खाँटी पुरबिया कोई भी किताब आए पहले वही ले जाता फिर पढे या ना पढे पर नयी किताब पर पहला हक़ उसी का था, रेणु की रचनाएँ मुझे पसंद थी तो "कितने चौराहे" की चाह मे ही शिवकुटी चला गया, बैठक हुयी सबने क्या पढा इस पर चर्चा हुयी कुछ कविता कहानियों का पाठ हुआ एक कविता अभिषेक ने लिखी थी विभाजन के दर्द के साथ सबने तारीफ की कुछ कमियाँ थी पर मै बोल भी नही पाया अगर कुछ कहता तो यही होता की "एको ठो लिखे हो का मे जाऊन लिखत है बस वही का पेलो" अब तारीफ इतना हो गयी थी की अभिषेक बाबू अपने को धर्मवीर भारती समझ लेहीन, इतने मे ही आशीष बोला की यार ये छपने लायक है कौनों अखबार मे कुछ जोगाड़ कर देव यार, इसी मुद्दे को लेकर काफी देर तक गहमागहमी फिर सब वैसे ही, और उस दिन क्या उस क्लब की कभी कोई कविता या कहानी कही नही छपी, बैठक समाप्त हो चुकी थी मै भी किताब ले कर शिवकुटी से ही गंगा किनारे चला गया
गंगा के तेज मटमैले बहाव को देख कर अजीब सी उलझन हो रही थी जिसे पूरा हिंदुस्तान पवित्र अमृत मानता है वो पानी मै कभी ना पीयू, गंगा शांत पूरे वेग से अपने गन्त्ब्य के लिए दौड़ रही थी जैसे वो भी यहाँ रहना नही चाहती इस दुनिया से तंग आ चुकी है किनारे मे कौन उसे क्षतविक्षत कर रहा उस पर वो ध्यान ही नही देगी। कितने पापी अपना पाप गंगा के सर मढ़ना चाहते है, ये सब गंगा अनदेखा कर रही थी और युगों से इस गंदगी से दूर जाना चाहती है पर जा नही पाती, गंगा माँ है और मै उससे अपना रिश्ता समझना चाहता था, पर वो बराबर भाग रही थी ये कैसा रिश्ता था, इंदुमति कहती थी की रिश्तो को ले कर मेरी समझ कमजोर है शायद तभी मै अपने और गंगा के रिश्ते को समझ नही पाया, पर एक संतुष्टि मन मे हमेशा है की जब भी दुनिया से थक जाऊंगा बीमार रहूँगा तो गंगा माँ के पास ही जाऊंगा वो अपनी गोद मे जगह जरूर देगी और अपने साथ ले जाएगी यही सब सोचते शाम हो गयी थी, गंगा किनारे से चलते हुये शिवकुटी चौराहे मे आकर चाय पीने लगा तभी पीछे आशीष ने आवाज़ दी 'कस मे कहाँ अल्लापुर नही गए का' नही बस यही गंगा किनारे चला गया था, कुछ टेंशन आशीष ने पूछा मै बोला नही बस कुछ मन भारी है कुछ अच्छा नही लग रहा, आज यही रुको कल जाना और चलो सीनेमा दिखाते है। चाउचक सिनेमा है अवतार मा रामगोपाल वाला जंगल और उर्मिला इतना कह कर अपनी बत्तीसी दिखा दी
तेलियरगंज मे वही एक सिनेमाहाल था ही लोगो का तो पता नही पर रामगोपाल वर्मा की फिल्मे मुझे ठीक लगती थीं, जब भी कोई नयी फिल्म रिलीज़ होती तो वह पूरा शहर घूम कर आखिर मे अवतारसिनेमा मे लगती थी, जंगल भी मुझे औसत ही लगी, सिनेमा देख कर वापस आए तो रात तीन बजे तक बाटी चोखा का कार्यक्रम चलता रहा, बाटी चोखा एक एसी परम्परा के साथ बनता की जैसे उसे अकेले खाना अपराध हो और ये प्रयाग की धरती मे संभव नही है, जब भी किसी के यहाँ बाटी चोखा बनता तो पड़ोसी उस दिन उसी के यहाँ खाना अपना धर्म समझते हो, उस रात आशीष के साथ जैसे कुछ आत्मबल फिर बढ गया था ।
अगली सुबह जल्द ही अल्लापुर आ गया और राधा (इंदुमति) से मिलने की योजनाओ मे शोध चल रहा था, शोध का परिणाम यह रहा की कुछ नही समझ आया तो सीधा इंदुमति के घर ही पहुँच गया डोरवेल बजाने पर मित्तल साब की पत्नी ने दरवाजा खोला अभिवादन ने हांथ जोड़ते हुये मैंने पूछा राधा है क्या.? इतना कह कर वो चली गयीं कुछ देर मे राधा आई और बोली क्या है...? मेरे पास उसके सवाल का कोई ठीक सा जवाब नही था तब भी मैंने उसे कहा तैयार हो कर आओ कटरा चलना ही और मिसेज़ मित्तल से बताना की शाम को देर हो जाएगी ।
वापस आ कर अपनी बालकनी मे खड़े राधा का इंतज़ार कर रहा था, राधा गली मे आती दिखी तो तो मै भी बालकनी से नीचे आ गया था, इंदुमति को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो बादलों से उतर के आ रही हो, उस दिन इंदुमति ने सफ़ेद चूड़ीदार सलवार के साथ कुछ दीला सा गुलाबी कुर्ता और सफ़ेद चुन्नी पैरो मे बादामी रंग की चप्पल ये सब मुझे एक कवि की कल्पना की तरह लग रहा था हम दोनों साथ साथ चल दिये और बिना कुछ बोले मै उसे पूरी तरह जान लेना चाहता था चौराहे मे आकार रिक्शा लिया और आगे चल दिये रिक्शे मे बैठते वक़्त भी ना रिक्शे वाले ने कुछ पूछा ना राधा ने एक समर्पण सा भाव था रिक्शा वाला भी सीधी दिशा मे चलता रहा और आगे जा कर पुराने साकेत आस्पताल के पास ही रिक्शा छोड़ दिया
रिक्शे से उतरने के बाद इंदुमति ने पुंछा अब रिक्शा क्यु छोड़ दिया कटरा चलना था ना, बिना कुछ बोले ही मैंने कहा चाय पीते है, कैफे से कुछ नोट्स ले कर चलते है, खाने के लिए वहीं कटरा मे देखते है, नोट्स ले कर पैदल ही विश्वविद्धयालय की तरफ चल दिये, चलेते हुये मैंने कहा कहाँ थी इंदुमति इतने दिन कुछ पता नही चला तुम्हारा आज जब हफ्ते भर से ज्यादा हो रहा था तो सोचा की घर जा कर बुला लूँ घर चली गयी थी अभी कल ही तो आई हूँ इंदुमति बोली, तभी तो मै रोज शाम चौराहे पर इंतज़ार करता था की शायद तुम कोई अंडे लेने ही आओ पर तुम्हारा पता नही था, इसके बाद जो हुआ वो मैंने सोचा भी नही था, इंदुमति रुक गयी और मेरी तरफ देखते हुये बोली ओ तुम रोज शाम इंतज़ार करते थे,उसकी आंखे सुर्ख हो चुकी थी क्रोध साफ समझ आ रहा था,इंदुमति बोली की मुझे लगा की तुम ईमानदार हो पर तुम झूठे बेईमान हो तुम्हें दूसरों को तकलीफ देने मे मज़ा आता है, रोज शाम इंतज़ार तुमने नही मैंने किया है, और जब पता चला की तुम अपने कमरे हो, तब भी तकलीफ हुई थी पर फिर भी इंतज़ार किया कल इतवार था तो तुम्हारे रूम मे भी पता किया तो तुम शिवकुटी गए थे, किसी से कितना झूठ बोलोगे और कितनी तकलीफ दोगे अमित और इन सबके बाद भी हम साथ मे जा रहे है, अब तुम बिना कुछ बोले चलते चलो यही बेहतर है।
कुछ दूर और चलने के बाद रिक्शे वाले को आवाज़ दी "कंपनी बाग चलबों" कंपनी बाग पहुँच कर वही एक पेड़ के नीचे फैल गया, इंदुमति भी कुछ सामान्य थी हम दोनों मे से कोई उस सन्नाटे को जैसे तोड़ना नही चाहता था, उस दिन इंदुमति रोज़ से ज्यादा सुंदर लग रही थी आज उसने बालों को कुछ डीला बांध रखा था इसके बाद भी कुछ बाल हवा के साथ उड़ जाना चाहते हों, मैंने इंदुमति को पास आ कर बैठने के लिए कहा तो वो और पीछे खिसकते हुये अपनी चुन्नी ठीक करने लगी, मै बोला अब भी नाराज़ हों माफ नही करोगी, वो बोली नाराज़ ही कब थी जो बात माफी की हों मै तो बस इतना चाहती हूँ की हम दोनों के बीच ऐसा कुछ ना हों की माफी जैसे शब्द को बीच मे आना पड़े उस दिन हम दोनों के बीच काफी बातें हुई जैसे दोनों की पसंद ना पसंद पे बात हुयी और कुछ आ लिखित समझौते भी हस्ताक्षर किए गए, जैसे हम दोनों मे कोई भी बिना बताए कहीं नही जाएगा कम से कम इलाहाबाद तो बिना बताए बिलकुल भी नही छोड़ेगा। और अगले इतवार को सिनेमा देखने भी चलेंगे सिनेमा का शौक़ हम दोनों को था ।
क्रमशः--------------

गुरुवार, 21 अगस्त 2014

                     ____________ कुछ राष्ट्रवादी देशद्रोही भी बोल सकते है______________


आज 68वां स्वतन्त्रता दिवस है । सब अपनी अपनी तरह से इसे लेकर उत्साहित, बच्चे स्कूल मे मिलने वाले गिफ्ट और मिठाइयों के लिए, विभागीय अधिकारी मिठाई मे बचे रुपयों को लेकर, अपने नेता जी एक दम नये भाषण को लेकर, पर नेता जी को यह नहीं पता की जो वो बोलने वाले है वो उनसे पहले वाले विधायक जी भी यही सब बोलते थे।
15 अगस्त मेरे लिए एक छुट्टी का दिन होगा जो मै अपने परिवार के साथ बिताने वाला हूँ। पत्नी बच्चों के लिये सुबह का नस्ता बनाऊँगा फिर कही घूमने जाऊंगा किसी माल सिनेमा या जो मेरी बेटी बोलेगी पर किसी नेता जी भाषण सुनने का बिलकुल भी मन नहीं है। अगर कहीं नही गया तो पीसी मे कुछ गाने सुनुगा। फिर बच्चो के साथ कार्टून देखुंगा कम से कम मंच वाले कार्टून से टीवी वाले कार्टून ज्यादा सच्चे और अच्छे लगते है । मुझे कुछ राष्ट्रवादी देशद्रोही भी बोल सकते है और कुछ बड़का नेता टाइप लोग पाकिस्तान जाने के लिए भी बोल सकते हैं, बोले मुझे कोई फर्क नही पड़ता फर्क तो तब पड़ता जब सुबह टंकी मे पेट्रोल लेने जाता हु तो दाम आधी रात से दो रुपए बड़ गए होते है, फर्क पड़ता है जब शाम को घर आते वक़्त सब्जी वाला बताता है की टमाटर 80 रुपए किलो है प्याज भी महंगा है । तो लगता है जिन लोगों ने मुझसे ये सब सही दाम मे दिलाने की बात की थी वो वादे से मुकर गए। और मै कुछ नही कर सकता तो मुझे अपनी स्वतन्त्रता पर शक होता है शक तब और पुख्ता हो जाता है जब दो के साथ आप तीन लोग किसी जरूरी काम से बाइक मे जा रहे हो तो ट्राफिक वाला आपको रोक लेता है , और वहीं से तीन सवारी पास आटो वाला पंद्रह ले कर निकल जाता है । आप मजबूरी मे तीन बैठे है। तो अपराध बनता है और आटो वाला निकल गया क्यूकी वो पैसे या पुलिसिया भाषा मे इंट्री देता है। तब एक बार फिर मै अपनी स्वतन्त्रता मे शक करता हूँ।
जिन नेता जी का भाषण होना है उनके कई रिश्तेदार होंगे जिन्होंने बिजली के मीटर रुकवा दिए होंगे, कुछ जो ठेकेदारी करते है उन्होने सड़कें ऐसी बनाई है की जो जल्दी ही गड्डो मे तब्दील हो गयी है । डैम ऐसे बनाए की वो एक बारिश मे ही बह गए अब ये सब लोग तालियाँ बजाएगे खुशियाँ मनाएगे क्यूकी ये सब आज़ाद है।
मै कैसे मनाऊ आजादी का जश्न जबकि मुझे पता है की मै आजाद नही हूँ । कल से फिर वही ऑफिस वही रूटीन पर अपने नेता स्वतन्त्रता दिवस की थकान और तनाव से मुक्ति के लिए सरकारी खर्चे से यूरोप जा सकते है। या तो इसी धन से कहीं कुछ भक्ति भी दिखा सकते है। कल मै गैस सिलेन्डर की लाइन मे खड़ा रहूँगा और नेता जी या किसी अधिकारी का ड्राइवर आकर एक चार छः सिलेन्डर ले जाएगा और मुझे फिर कल आने के लिए बोला जाएगा । गैस एजेंसी वाले की भी मजबूर है पहले तो एजेंसी इन्ही नेता और अधिकारियों के मेहरबानी से मिली है दूसरे उसे हर महीने गैस ब्लैक भी तो करनी है नही तो इलाके के दबंग लोगों के होटल और रेस्टोरेन्ट कैसे चलेंगे ये सब एक दूसरे के पूरक है एक मै ही अपने को अलग पाता हूँ ।
तो मै भी इन सब दूर ही रहूँगा और अपने बच्चों के साथ खेलूगा टीवी देखुंगा कल सोलह अगस्त को बच्चे का बर्थडे है जो इस महीने का बजट बिगाड़ेगा पर पर उसे नए कपड़े गिफ्ट मे कुछ वीडियो गेम दिलाने है ये मेरी ज़िम्मेदारी है और वादा भी है जो पूरा करना है पूरा होगा मेरा बेटा सजावट के लिए कुछ प्लास्टिक के झंडे ले आया था सामने शोकेस मे रक्खे थे उन्हे देख कर जय हिन्द बोलने का मन किया पर शब्द नही निकले आंखे जरूर गीली हो गयी थी। खुद को बहुत ही अकेला पाता हूं। सोचता हूं, क्या और भी लोग होंगे मेरी तरह जो आज अकेले में आज़ादी का यह त्यौहार मना रहे होंगे। वे लोग जो इस भीड़ का हिस्सा बनने से खुद को बचाये रख पाए होंगे..?? वे लोग जो अपने फायदे के लिए इस देश के कानून को रौंदने में विश्वास नहीं करते..?? वे लोग जो रिश्वत या ताकत के बल पर दूसरों का हक नहीं छीनते..??????

शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

                                           बच्चों को भी हो सेक्स की जानकारी 


आज कल सेक्स को लेकर एक तरह की बहस चल रही है। अब इसको लेकर हम अपने घर या किशोर बच्चों से कैसे बात करें। यह एक तरह का गंभीर सवाल बन कर सामने है। 
माता-पिता यह बात माने या न माने पर हकीकत यही है की बच्चे सबसे ज्यादा अगर किसी से प्रभावित होते हैं तो वे होते हैं उनके अपने माँ-बाप। इस वजह से, यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप एक ही समय में अपने आपको कमतर और अपने बच्चों के किशोर मित्रों को ताकतवर न माने। अब तक किए गए अनुसंधानों से यह स्पष्ट है की माँ-बाप और बच्चों के मध्य प्यार भरा करीबी रिश्ता किशोरावस्था के मुश्किल दौर में उनकी सबसे बड़ी ताकत होता है और जीवन का कोई भी कठिन निर्णय लेते वक्त उनका सहायक बनता है। वे सदैव अपने मां-बाप में ही सकारात्मक, व्यस्क रोल मॉडल तलाशते है जो जीवन की कठिन राह में उनका सही मार्गदर्शन कर सकें। इसलिए माँ-बाप का भी कर्तव्य बनता है कि वे अपने बच्चों के साथ स्वस्थ और ईमानदारीपूर्ण रिश्ता कायम करें।
समाज में जिस तरह यौन अपराधों की वृद्धि हो रही है किशोर अपराधियों की संलग्नता बढ़ी है उसे देखते हुए परिवार की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यह महत्वपूर्ण है की किशोरवय पुत्र या पुत्री के साथ सेक्स, लव और रिश्तों को लेकर खुलकर बात की जाय न कि कहानियों या मिथकों का सहारा लेकर उन्हें समझाने की कोशिश की जाय। भारतीय परिवारों में सेक्स जैसे विषयों पर प्रायः घर पर बात नहीं होती। लेकिन सोचकर देखिए अगर आप ही उनसे इस विषय पर खुल कर बात नहीं करेंगे तो वे कहीं और से जानकारी लेने की कोशिश करेंगे जो संभवतः सही रास्ता नहीं होगा और हो सकता है कि भविष्य में आपके विश्वास को भी ठेस पहुँचाए। इसलिए कच्ची उम्र के साथ जीवन में आने वाले बदलावों के बारे में एक दोस्त की तरह उससे बात करिए। एक ही लाइन में आप उसे जल्दी सेक्स के संभावित जोखिम के बारे में बता सकते हैं और उससे बचने के तरीके भी बता सकते है ताकि अंजाने में उससे कोई गलती न हो।
आपके अपने किशोर के साथ रिश्ते की गुणवत्ता विशेष रूप से यौन समस्याओं के बारे में बात कर रहे हो, सकारात्मक प्रभाव डालती है। सिर्फ इसलिए की आपका बच्चा अभी व्यस्क नहीं है का यह मतलब नहीं है कि उसकी किसी अन्य व्यक्ति के प्रति प्रबल और शक्तिशाली भावनाएं न हो तथा वह उसके साथ सेक्स संबंध बनाने की इच्छा न रखता हो। और इस कच्ची उम्र में वह किसी के प्यार में न पड़ जाए। यह स्थिति आपके लिए जितनी डरावनी होगी उससे ज्यादा खतरनाक उस किशोर के लिए होगी जो भावावेश में आकर कोई ऐसी गलती न कर बैठते है जिसकी भरपाई संभव न होती।
अपने किशोरों की भावनाओं का सम्मान दीजिए, किसी भी विषय पर उनकी टिप्पणियों को सोचे-समझे बिना खारिज मत करिए। खासकर यदि वह किसी प्यार में पड़ गए हो, तो यह कहकर कि तुम अभी सिर्फ 15 साल के हो, तुम क्या जानो असली प्यार क्या होता है, कहकर उन्हें उकसाइए मत कि वे असली प्यार की तलाश में एक्सपैरीमेंट करने निकल पड़े। यदि ऐसा हुआ तो वो आपको बहुत भारी पड़ेगा।
जब आप इस तरह से बात करते है तो किशोर अपने और आपके बीच पीढ़ी के अंतर को ले आता है, उसको लगता है कि आप उसे नहीं समझते। जब ऐसा होता है तो आप दोनों के बीच दूरियाँ बन जाती है। जिनको पाटने में काफी वक्त लग सकता है।
अपने बेटे और बेटी के साथ अपनी भावनाओं को शेयर करें ताकि उन्हें स्वयं को सुरक्षित और महत्वपूर्ण महसूस करने में सहायता मिले। यह वह समय है जब आप अपने किशोर को वैल्यू सिस्टम से अवगत कराएं। उसे समझाएं की जीवन में मूल्यों का क्या महत्व है और दुनिया में अपनी पहचान होना कितना महत्वपूर्ण है। उसके मन में खुद के लिए भी जितना सम्मान होना चाहिए उतना ही औरों के लिए भी होना चाहिए। अगर उनके ऊपर किसी भी तरह का अनावश्यक दबाव डाला जा रहा है चाहे वह सेक्स से संबंधित ही क्यों न उन्हें उसका खुलकर विरोध करना चाहिए, क्योंकि यह उम्र सेक्स सम्बन्ध स्थापित करने की नहीं है।
अंत में, आपकी कोशिश होनी चाहिए की आपका पारिवारिक जीवन स्वस्थ और स्थिर हो। अपने किशोर की गतिविधियों में आपकी दिलचस्पी हो, यह बात उसके अंदर आत्मविश्वास को बढ़ाएगी और वह और भी अच्छा करने का प्रयत्न करेगा। इसके विपरीत यदि घर का माहौल अच्छा नहीं होगा। माता-पिता के मध्य तनावपूर्ण संबंध होंगे, वे स्वेच्छाचारी होंगे या उनके विवाहेत्तर संबंध होंगे, तो किशोरवय बच्चों पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा। तथा स्वस्थ परिवार की छवि का जो सकारात्मक प्रभाव उन पर पड़ना चाहिए, वह नहीं पड़ेगा उल्टे संभावित नुकसान हो सकता है।
स्वेच्छाचारी परिवेश से आने वाले किशोरों में यौन संबंध रखने का खतरा अधिक होता है। इसलिए आपका कर्तव्य बनता है की आपके परिवार के सदस्यों के मध्य स्वस्थ संबंध हों, अगर आपको लगता है कि आपका किशोर रास्ता भटक रहा है, तो यह आप पर निर्भर है कि एक पैरेन्ट् के रूप में, आप अपने किशोर को सही रास्ते पर लाने के लिए किस तरह के कदम उठाएंगे, उनके जीवन में सबसे अच्छा , सबसे अधिक विश्वसनीय और ईमानदार रोल मॉडल की भूमिका अदा करेंगे या उसके साथ उपेक्षित व्यवहार करेंगे। याद रखे की जो किशोर सेक्स संबंधित प्रश्नों के लिए अपने माता - पिता पर निर्भर करते हैं वो उतने ज्यादा यौन सक्रिय नहीं होते। क्योंकि उनकों अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता।
एक दिलचस्प अध्ययन के अनुसार जिन किशोरों का कोई रोल मॉडल नहीं था, वे सेक्स को लेकर अधिक सक्रिय थे। इसका मतलब यह है , अपने किशोरों के साथ एक स्वस्थ संबंध बनाने का यह एक हिस्सा है कि आप अपने किशोरों की बातों को ध्यान से सुने और उनसे सेक्स के बारे में भी खुल कर बात करें, भले ही वह उस समय आप से आँखें चुराए, लेकिन आपको ताज्जुब नहीं करना चाहिए यदि वे आगामी दिनों या हफ्तों में सेक्स संबंधित प्रश्न के लिए आपकी सलाह लेनी चाहें। शोधकर्ता , मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय में बाल रोग के प्रोफेसर , और कनाडा के बाल सोसायटी के अध्यक्ष के अनुसार - माता पिता उससे कहीं अधिक अधिक महत्वपूर्ण हैं जितना वे समझते हैं। किशोरावस्था स्वायत्ता की मांग करती है जो स्वाभाविक है। लेकिन माता - पिता की यह भूमिका है कि वे फिर भी रोल मॉडल बने रहें।

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

                                                      मै अंडे नही खाता इंदुमती


राधा (मेरी इंदुमती मै उसे इंदुमती ही बुलाता था) से मुलाक़ात का दिन तो नही याद पर मै बुक स्टाल के पास अमृता प्रीतम की एक किताब हाँथ मे लेकर देख रहा था जब पहली बार मेरी इंदुमती ने मुझसे कहा ये किताब मैंने भी पड़ी है अच्छी है। उसके पहले तक राधा शायद मुझे ना जानती रही हो पर मै जनता था की वो लाज के पास वाले मित्तल साब के घर मे रहती है । मुहल्ले की लड़कियों को लेकर लड़को मे तमाम तरह की सामान्य ज्ञान प्रतियोगिताए होती रहती है। उस अच्छी किताब के साथ ही इंदुमती से कुछ और देर बातें होती रही । अब अक्सर शाम को इंदुमती से मुलाक़ात होती और साथ मे ही चाय पी कर आते । जुलाई की एक शाम काफी बरिस हो रही थी। "का भइया चाय देई का जेका तुम इंतज़ार मा हो उ ना आई" भोलू चाय वाला बोला । चुप कर बे बारिश के वजह से बाइठे है पनिया निकल जाय तो चलन अऊर चाय फिर से बना बे सबेरे का काढ़ा न पेलो, बारिश धीरे धीरे कम हो रही थी मन कुछ भारी सा था जैसे कोई काम रह गया हो कुछ समझ भी नही आ रहा था । भोलू से एक "सिगरेट" मांगी दुकान खाली थी बरिस भी थी सोचा की तब तक सुलगा ही लेते है । उस समय तक सरकार ने धूम्रपान को लेकर कोई कानून नही बनाये थे पर मै हमेशा सार्वजनिक जगह पर सिगरेट पीने से बचता ही रहा, बारिश लगभग बंद ही हो गयी थी। यही कोई साड़े पाँच का वक़्त रहा होगा पर काले बादलों की वजह से लग रहा था साड़े सात बजे होंगे रूम जाने की सोच रहा था भोलू को पैसे दे कर दुकान के बाहर निकला तो इंदुमती गुलाबी रंग की छतरी लिए चली आ रही थी

तुम अभी हो मै सोच रही थी कि बारिश हो रही है तो ना आए होगे, चलो अंडे लेने है, आते ही इन्दुमति बोली, हूँ बस चाय के लिए निकला था, फिर कुछ देर बातें करते रहे उसे पीएमटी के लिए कोचिंग करनी थी उसी के बेहतर विकल्प को लेकर परेशान थी चाय पीने के बाद इंदुमती ने राजू से अंडे लिये और हम दोनों अपने अपने रूम आ गये, उस रात मै काफी परेशान था राधा को लेकर मेरे अंदर जो आकर्षण आ रहा था, उसे मै मान नही रहा था और फिर माना भी नही अगले कई दिनों तक बाहर ही नहीं निकला,

लगभग दस दिन हो गये थे बाहर निकले हुये इतवार का दिन था कहीं घूमने का मन कर रहा था । किसके साथ जाऊँ ये सवाल तब तक मुझे परेशान करता रहा है जब तक मैंने शादी नही की खैर उस वक़्त तो ये बड़ा सवाल था मेरे लिये मुझे दोस्तों की कमी हमेशा रही है, इलाहाबाद मे भी एक चितरंजन ही था जिसे दोस्त कहा जा सकता था। बाकी के तो सब उ उपाध्याय जैसे थे जो कुकर की सिटी बजी साले घुस आए कमरे मे खैर उपाध्याय की बात बाद मे करते है। तो उस दिन चितरंजन के घर पहुँच गए। घर के बाहर ही था की चितरंजन ने देखते ही कहा " कस मे जिंदा हो हम तो सोचे की मर गएव " नहीं यार थोड़ा तबीयत ठीक नही थी तभी कोचिंग भी नही आया कुछ चाय वाय भी है की बस बकैती करबों मे चितरंजन ने आवाज दी छुटकी दो चाय ले आना छुटकी प्रतापगढ़ के किसी गाँव की थी जिसे दहेज के लिये ससुराल वालों ने जला दिया था और बाद मे मायके वाले भी अपने साथ रखने को तैयार नही थे तभी चितरंजन के पिता जी जो पुलिस मे ओहदेदार थे छुटकी को अपने घर ले आये और वो इनके परिवार का एक सदस्य जैसे थी ।

चाय पीकर हम सिनेमा देखने के लिए कीटगंज विश्वामित्र पहुंचे वहाँ शाहरुख खान की जोश लगी थी अब देखना था तो देख लिया और फिल्म भी वैसी ही थी जैसा मैंने सोचा था एक इतवार और खराब कर लिया था हाँ एक गीत " हारे हारे हम तो दिल से हारे" कुछ अच्छा लगा था जो बाद मे भी मै सुना करता था । सिनेमा देखने के बाद मै चितरंजन को जार्जटाउन छोड़ कर सीधे अल्लापुर पहुंचा और भोलू की दुकान मे सिगरेट सुलगा कर बैठ गया भोलू गजल प्रेमी था सो उस वक़्त भी जगजीत सिंह की गजल "मेरी तरह तुम भी झूठे हो मुझसे बिछड़ के खुश रहते हो" चल रही थी तो वही बैठा रहा भोलू बोला का भइया कहाँ रहेन उ रोज पूछय आवत है, कौन मे मैने कहा, अरे वही जिन्हे रोज चाय पियावत हौ वही और कौन भोलू की बात सुनकर ऐसा लगा जैसे कुछ सदियों से खोई हुई चीज का पता बता दिया है । साड़े चार बज रहे थे मैंने भोलू से पूंछा कितनी देर आती है, बस आवेन वाली होइहे

शाम के पाँच बज रहे थे राधा राजू से अंडे ले रही थी और मै भोलू चाय वाले की दुकान के पास खड़े उसे देख रहा था अंडे लेने के बाद राधा भोलू की दुकान की तरफ को पलटी तो मै खड़ा था। मुझे देखते ही मेरी इंदुमती ऐसे चहकी जैसे किसी बच्चे का सबसे प्यारा खोया हुवा खिलौना मिल जाय, एक बार एक दम आक्रमक होते हुये बोली कहाँ थे इतने दिन और इतना बोलने के बाद इंदुमती सामान्य होने की कोसिस करने लगी, जैसे उसे मेरे होने ना होने का कोई फर्क ही नही पड़ता, मै भी बिना इंदुमती की बात जवाब दिये भोलू को दो चाय के लिए बोल दिया और दोनों वही बाहर बेंच पर बैठ गए,भोलू ने चाय दी चाय पीते पीते इंदुमती बोली की मैंने एक या दो बार भोलू से पूंछा भी की तुम नही आए जबकि मुझे पता था की इंदुमती मुझे रोज पूछने आती थी, उसने फिर पुंछा कहाँ थे बताया नही, "कुछ तबीयत ठीक नही थी तो रूम मे ही था निकला ही नही" मै बोला। इंदुमती कहने लगी की मुझे बताना चाहिए था ना मेरे लिए खाना ही भिजवा देती, "मै अंडे नही खाता इंदुमती" वो बोली मज़ाक मत करो जब दोस्ती की है तो क्या इतना भी नही और तुम भी तो मेरी कोचिंग के लिए कितने चक्कर लगा चुके हो तब इतना तो बनता है। मैंने कहा ठीक राजकुमारी इंदुमती जी आगे से बता दूंगा वो बोली कुछ और सब्जियाँ ले लेते है तुम्हारे लिए भी बना दूँगी, इसकी जरूरत नहीं है मै ठीक हूँ और आज सुबह की सब्जी रखी होगी उसी से काम चल जाएगा

हम अपने अपने रूम आ चुके थे । मै उस रात चैन से सो सका मै आसवस्त था की अब हम दोनों अच्छे दोस्त रहेगे । आगे से कई बार राधा अपने रूम से मेरे लिए खाना बना कर देती रही
"मै कभी उस रिश्ते को समझ नही पाया राधा भी कहती थी की रिश्तों को लेकर मेरी समझ कम है "
क्रमशः

रविवार, 3 अगस्त 2014

                             इलाहाबाद में एक फ्रेण्डसिपडे मेरा भी 

साल २००० अगस्त का पहला इतवार ६ तारीख को था उसके दो दिन पहले ही राधा ने मुझे बताया था की था की ६ को अगस्त का पहला इतवार है तब मै  बोला की वो तो हर महीने आता है फिर वो गुस्से में गुलाब होती हुई बोली  हर सन्डे और इसमें फर्क है, "का फरक है में इतवार तो इतवार है के नै" मै बोला, तब मेरी इन्दुमती बोली 'मै राधा को इन्दुमती बुलाता था वो मेरे लॉज के सामने वाले घर में रहती थी मेडिकल की तैयारी  कर रही थी एक बुकस्टॉल की मुलाक़ात कब दोस्ती में  बदल गयी पता ही नही चला" हाँ तो इन्दुमती बोली की अगस्त के पहले सन्डे को फ्रेंडसिपडे होता है अब ये मत बोलना की  ये भी नही पता था। अब मै क्या बोलता की मुझे सच में नही पता था की ये कब होता है हाँ ये जरूर पता था की फ्रेंडसिपडे होता है। पर मेरे हिसाब से फरवरी में होता रहा होगा क्युकी ऐसे फालतू के दिन फरवरी में ही  होते है । अबतक राजकुमारी इन्दुमती का नया फरमान आ चुका था की सन्डे को कही जाना मत कटरा चलना है कुछ किताबें लेने और कुछ काम है उस वक़्त हम अल्लापुर नेता चौराहे के पास ही रहते थे। 

उपाध्याय जी मुझे जोर से हिला कर चिल्ला रहे थे उठो में कुम्भकरण, मै-  "का है भइया सोने दो ना आज तो इतवार है तो उपाध्याय अपनी चिर परिचित कुटिल मुस्कान के साथ बोला अरे भैयवा उ निचे बुला रही है तुम्हारी राधारानी और दस बज गया है।  मै तुरन्त उपाध्याय को झटक कर  और बालकनी में जा के निचे झाँका तो राधा तैयार खड़ी  थी। मै ऊपर से बोला बस पांच मिनट में आया उस दिन धुप नही निकली थी ठंडी हवाओं के साथ लल्लनटॉप मौसम था मै  रूम में जा के उपाध्याय को चिल्लाया हो गया अब निकलो मुझे जाना है उपाध्याय लॉज में ही मेरे बगल वाले रूम में रहता था उपाध्याय फिर कुटिलता के साथ बोला की नहाबो ना  का में तब तक मै ब्रस कर रहा था और फटाफट नहा  के जींस पहनी और टीसर्ट डालके जूते पहनते पहनते उपाध्याय को फिर चिल्लाया अब निकलबो जाना है यार उ कित्ती देर से निचे खड़ी है उपाध्याय निकलते हुए  फिर बोला हाँ उका बहुत ध्यान है और हम तो ससुरे लम्पट है ना मै  रूम में ताला बंद करके निचे पंहुचा। 

राधा मुझे उस वक़्त साक्षात लक्ष्मीबाई लग रही थी, उसने मेरे हाँथ को ट्रॉली बैग की तरह पकड़ा और खींचती हुए चल दी मै अन्दर ही अन्दर अपराधबोध में था की आज जल्दी उठ जाता तो ही ठीक था पर चलो अब जो भी होगा देखते है। हम अपने लॉज के आगे गली में आ गए थे हलकी फ़ुहार वाली बारिस भी होने लगी थी, तभी अचानक राधा मुड़ी और मेरे माथे को चूमते हुए बोलो हैप्पी फ्रेंडशिपडे सब कुछ इतना अचानक और चौकाने वाला था की मै कुछ बोल ही नही पाया राधा मुझसे सीनियर थी और हम लोग लगभग साल भर से दोस्त थे और अपनी सीमाएं  भी हमें पता थी, मै थोड़ा संभलते हुए दोनों हांथो से उसके हाँथ को पकड़ते हुए कहा सेम टू यू अब हम दोनों सामान्य थे मैंने पूंछा की कहाँ चलना है उसने कोई जवाब नही दिया और मेरा हाँथ ऐसे पकड़ लिया जैसे कोई बच्चा भीड़ में खो जाने  के डर से अपने साथ आये किसी का   हाँथ पकड़ लेता है आगे जा कर चाय की दुकान में चाय पी चाय लेने के बाद राधा बोली जल्दी चाय ख़त्म करो और कटरा चलना है आज नेतराम के यहाँ कचौड़ी खाना है बहुत जोर की भूख लगी है यार चाय का गिलास रखते  हुये मैंने चाय वाले को पैसे दिए इतने में ही एक ऑटो दिखा उस वक़्त बंधवा की तरफ आम तौर पर रिक्सा ही मिलता था कुछ किस्मत मेहरबाँ थी तो ऑटो मिल गया राधा रोज से अलग उस दिन मुझसे कुछ और करीब आकर  बैठी थी जैसे कोई बच्चा गोद में चढ़ने की कोसिस कर रहा हो मैंने उसे छेड़ते हुए कहा का बात है इन्दुमती आज बहुत प्यार आ रहा है राधा कुछ सकुचाई सी संभलने की नाकाम कोसिस करके वैसे ही बैठी रही और अपनी उँगलियाँ मेरे गले में चलाती  रही अब हम नेतराम चौराहे में थे कचौड़ियां खाते वक़्त कहने लगी अमित कोई बाइक नही मिलेगी क्या आज घूमने का मन कर रहा है। मिलेगी बिलकुल मिलेगी अब राजकुमारी कुछ मांगे और वो ना मिले लानत है बन्दे पर पास के पीसीओ से अनुराग भइया को फोन किया और भइया बोले की ले जाओ आज सन्डे है कही जाना भी नही है। 

राधा के साथ अनुराग भइया के घर पहुंचे भइया वही कटरा में ही रहते थे राधा को भैया के घर के पहले ही छोड़ दिया था जनता था की भाभी देखेंगी और बेवजह का बतंगड़, भइया बाथरूम में थे अंदर से ही बोले भाभी से चाभी ले लो शाम को जल्दी आना कुछ काम है। भाभी भी देते हुए का बात है भैया कोई लड़की वड़की तो नही घुमा रहे आज फ्रेंडशिपडे में नही भाभी आप भी सावन है तो सोचे की मनकामेश्वर होले भाभी तपाक  से बोली मै भी चलूँ, नही नही कुछ दोस्त है उन्ही के साथ जाना है कहता हुआ भागा। 

बाइक लेकर राधा के पास पहुंचा राधा इस तरह साथ होलि जैसे आगे का रास्ता उसे पता हो और अब कभी उसे बाइक से उतारना नही है। भाभी से मनकामेश्वर जाने की बात कह कर आया था तो उधर सरस्वतीघाट ही चल दिया। बालसन चौराहे  पेट्रोल लिया फिर सरस्वतीघाट के बेंच में पहुँच गए है घाट में बैठे नदी को तकते रहे एक पानी शांत था सावन में यमुना पहली बार ऐसे बहाव  में रही होगी जब आवाज नही आ रही थी  राधा ने धीरे से कहा इधर आओ मै थोड़ा खिसक के और पास होगया मै कुछ बोलता  समझता राधा ने मुझे पकड़कर अपनी तरफ खींचा और मेरा सर अपनी गोद में रख लिया और बोली की कितना अच्छा होता की अगर आदमी के सम्बन्धों में एक निश्चित दुरी बनी रहे। ये सेक्स वासना ना हो जैसे इस फूल और तितली का रिश्ता क्या ऐसा हम इंसानों  में हो सकता है । उसकी आवाज कुछ भर्राई सी थी वो बोली क्या ऐसा नही हो सकता आदमी अपने प्रेमास्पद को पास लाकर छोड़ दे उसे बांधे  न। और एक बार फिर मेरे माथे को होंठो तक लाकर छोड़ दिया उसकी गरम गरम सांसे अंदर तक बरस गयी और बोली की कुछ ऐसा हो की अपने हृदय तक खींच कर फिर हटा ले इतना कह कर राधा ने एक बार  फिर अपने बांहों में मुझे कैद कर लिया। मै उसकी धड़कनों की ख़ुश्बू में डुबकी लगाता  रहा जब अपने चेहरे पर राधा के आंशुओं को महसूस किया तो उसे अलग किया, ये क्या है इन्दुमती राजकुमारियाँ कभी रोती है क्या फिर ये गुलाम है ना तेरे साथ और कैफे में जाकर कॉफी पी और निरुद्देस बाइक दिन भर  इलाहाबाद की सड़कों में दौड़ती रही अल्फेडपार्क पत्रिकाचौरहा हॉटस्टफ पीयचक्यू सिविलाइंस और फिर वो सिविलाइन्स में ही मुझे रुकने  कह कर एक कपड़ो के शोरूम गयी जब वापस आई तो राधा के  हाँथ में एक पैकेट था। फिर हम कटरा के लिए चल दिए चार बज रहे थे। भइया को बाइक वापस करनी थी भाइय नेतराम चौराहे में ही मिल गए और मुझे आवाज दी अमीत अमीत  मै अनसुना करना चाहता था पर कर नही पाया और वही भइया  को बाइक दे दी। 

एक ख़ामोशी के साथ मै और राधा रिक्से से वापस अल्लापुर आ रहे थे हम दोनों ही अब अपने रिश्ते में परिवर्तन को समझ रहे थे जैस एक दूसरे का चेहरा देखने में संकोच हो रहा हो राधा मेरी बांह में सर  रखे हुये आँखे बंद  किये थी हमारा फ्रेंडशिपडे हो चूका था चौराहे में रिक्से से उतर कर लॉज की तरफ चल दिए और ऐसा लग रहा था जैसे राधा का और मेरा कई जन्मों का साथ छूटने वाला हो तभी राधा बोली अमित लो ये तुम्हारे लिए है। इसकी क्या जरूरत थी राधा ने अपनी बड़ी बड़ी आँखे दिखाई और मै हमेशा की तरह चुप हो गया। हैप्पी फ्रेंडशिप डे राधा बोल कर भारी  कदमो के साथ  रूम की तरफ बढ़  गए।