इलाहाबाद में एक फ्रेण्डसिपडे मेरा भी
साल २००० अगस्त का पहला इतवार ६ तारीख को था उसके दो दिन पहले ही राधा ने मुझे बताया था की था की ६ को अगस्त का पहला इतवार है तब मै बोला की वो तो हर महीने आता है फिर वो गुस्से में गुलाब होती हुई बोली हर सन्डे और इसमें फर्क है, "का फरक है में इतवार तो इतवार है के नै" मै बोला, तब मेरी इन्दुमती बोली 'मै राधा को इन्दुमती बुलाता था वो मेरे लॉज के सामने वाले घर में रहती थी मेडिकल की तैयारी कर रही थी एक बुकस्टॉल की मुलाक़ात कब दोस्ती में बदल गयी पता ही नही चला" हाँ तो इन्दुमती बोली की अगस्त के पहले सन्डे को फ्रेंडसिपडे होता है अब ये मत बोलना की ये भी नही पता था। अब मै क्या बोलता की मुझे सच में नही पता था की ये कब होता है हाँ ये जरूर पता था की फ्रेंडसिपडे होता है। पर मेरे हिसाब से फरवरी में होता रहा होगा क्युकी ऐसे फालतू के दिन फरवरी में ही होते है । अबतक राजकुमारी इन्दुमती का नया फरमान आ चुका था की सन्डे को कही जाना मत कटरा चलना है कुछ किताबें लेने और कुछ काम है उस वक़्त हम अल्लापुर नेता चौराहे के पास ही रहते थे।
उपाध्याय जी मुझे जोर से हिला कर चिल्ला रहे थे उठो में कुम्भकरण, मै- "का है भइया सोने दो ना आज तो इतवार है तो उपाध्याय अपनी चिर परिचित कुटिल मुस्कान के साथ बोला अरे भैयवा उ निचे बुला रही है तुम्हारी राधारानी और दस बज गया है। मै तुरन्त उपाध्याय को झटक कर और बालकनी में जा के निचे झाँका तो राधा तैयार खड़ी थी। मै ऊपर से बोला बस पांच मिनट में आया उस दिन धुप नही निकली थी ठंडी हवाओं के साथ लल्लनटॉप मौसम था मै रूम में जा के उपाध्याय को चिल्लाया हो गया अब निकलो मुझे जाना है उपाध्याय लॉज में ही मेरे बगल वाले रूम में रहता था उपाध्याय फिर कुटिलता के साथ बोला की नहाबो ना का में तब तक मै ब्रस कर रहा था और फटाफट नहा के जींस पहनी और टीसर्ट डालके जूते पहनते पहनते उपाध्याय को फिर चिल्लाया अब निकलबो जाना है यार उ कित्ती देर से निचे खड़ी है उपाध्याय निकलते हुए फिर बोला हाँ उका बहुत ध्यान है और हम तो ससुरे लम्पट है ना मै रूम में ताला बंद करके निचे पंहुचा।
राधा मुझे उस वक़्त साक्षात लक्ष्मीबाई लग रही थी, उसने मेरे हाँथ को ट्रॉली बैग की तरह पकड़ा और खींचती हुए चल दी मै अन्दर ही अन्दर अपराधबोध में था की आज जल्दी उठ जाता तो ही ठीक था पर चलो अब जो भी होगा देखते है। हम अपने लॉज के आगे गली में आ गए थे हलकी फ़ुहार वाली बारिस भी होने लगी थी, तभी अचानक राधा मुड़ी और मेरे माथे को चूमते हुए बोलो हैप्पी फ्रेंडशिपडे सब कुछ इतना अचानक और चौकाने वाला था की मै कुछ बोल ही नही पाया राधा मुझसे सीनियर थी और हम लोग लगभग साल भर से दोस्त थे और अपनी सीमाएं भी हमें पता थी, मै थोड़ा संभलते हुए दोनों हांथो से उसके हाँथ को पकड़ते हुए कहा सेम टू यू अब हम दोनों सामान्य थे मैंने पूंछा की कहाँ चलना है उसने कोई जवाब नही दिया और मेरा हाँथ ऐसे पकड़ लिया जैसे कोई बच्चा भीड़ में खो जाने के डर से अपने साथ आये किसी का हाँथ पकड़ लेता है आगे जा कर चाय की दुकान में चाय पी चाय लेने के बाद राधा बोली जल्दी चाय ख़त्म करो और कटरा चलना है आज नेतराम के यहाँ कचौड़ी खाना है बहुत जोर की भूख लगी है यार चाय का गिलास रखते हुये मैंने चाय वाले को पैसे दिए इतने में ही एक ऑटो दिखा उस वक़्त बंधवा की तरफ आम तौर पर रिक्सा ही मिलता था कुछ किस्मत मेहरबाँ थी तो ऑटो मिल गया राधा रोज से अलग उस दिन मुझसे कुछ और करीब आकर बैठी थी जैसे कोई बच्चा गोद में चढ़ने की कोसिस कर रहा हो मैंने उसे छेड़ते हुए कहा का बात है इन्दुमती आज बहुत प्यार आ रहा है राधा कुछ सकुचाई सी संभलने की नाकाम कोसिस करके वैसे ही बैठी रही और अपनी उँगलियाँ मेरे गले में चलाती रही अब हम नेतराम चौराहे में थे कचौड़ियां खाते वक़्त कहने लगी अमित कोई बाइक नही मिलेगी क्या आज घूमने का मन कर रहा है। मिलेगी बिलकुल मिलेगी अब राजकुमारी कुछ मांगे और वो ना मिले लानत है बन्दे पर पास के पीसीओ से अनुराग भइया को फोन किया और भइया बोले की ले जाओ आज सन्डे है कही जाना भी नही है।
राधा के साथ अनुराग भइया के घर पहुंचे भइया वही कटरा में ही रहते थे राधा को भैया के घर के पहले ही छोड़ दिया था जनता था की भाभी देखेंगी और बेवजह का बतंगड़, भइया बाथरूम में थे अंदर से ही बोले भाभी से चाभी ले लो शाम को जल्दी आना कुछ काम है। भाभी भी देते हुए का बात है भैया कोई लड़की वड़की तो नही घुमा रहे आज फ्रेंडशिपडे में नही भाभी आप भी सावन है तो सोचे की मनकामेश्वर होले भाभी तपाक से बोली मै भी चलूँ, नही नही कुछ दोस्त है उन्ही के साथ जाना है कहता हुआ भागा।
बाइक लेकर राधा के पास पहुंचा राधा इस तरह साथ होलि जैसे आगे का रास्ता उसे पता हो और अब कभी उसे बाइक से उतारना नही है। भाभी से मनकामेश्वर जाने की बात कह कर आया था तो उधर सरस्वतीघाट ही चल दिया। बालसन चौराहे पेट्रोल लिया फिर सरस्वतीघाट के बेंच में पहुँच गए है घाट में बैठे नदी को तकते रहे एक पानी शांत था सावन में यमुना पहली बार ऐसे बहाव में रही होगी जब आवाज नही आ रही थी राधा ने धीरे से कहा इधर आओ मै थोड़ा खिसक के और पास होगया मै कुछ बोलता समझता राधा ने मुझे पकड़कर अपनी तरफ खींचा और मेरा सर अपनी गोद में रख लिया और बोली की कितना अच्छा होता की अगर आदमी के सम्बन्धों में एक निश्चित दुरी बनी रहे। ये सेक्स वासना ना हो जैसे इस फूल और तितली का रिश्ता क्या ऐसा हम इंसानों में हो सकता है । उसकी आवाज कुछ भर्राई सी थी वो बोली क्या ऐसा नही हो सकता आदमी अपने प्रेमास्पद को पास लाकर छोड़ दे उसे बांधे न। और एक बार फिर मेरे माथे को होंठो तक लाकर छोड़ दिया उसकी गरम गरम सांसे अंदर तक बरस गयी और बोली की कुछ ऐसा हो की अपने हृदय तक खींच कर फिर हटा ले इतना कह कर राधा ने एक बार फिर अपने बांहों में मुझे कैद कर लिया। मै उसकी धड़कनों की ख़ुश्बू में डुबकी लगाता रहा जब अपने चेहरे पर राधा के आंशुओं को महसूस किया तो उसे अलग किया, ये क्या है इन्दुमती राजकुमारियाँ कभी रोती है क्या फिर ये गुलाम है ना तेरे साथ और कैफे में जाकर कॉफी पी और निरुद्देस बाइक दिन भर इलाहाबाद की सड़कों में दौड़ती रही अल्फेडपार्क पत्रिकाचौरहा हॉटस्टफ पीयचक्यू सिविलाइंस और फिर वो सिविलाइन्स में ही मुझे रुकने कह कर एक कपड़ो के शोरूम गयी जब वापस आई तो राधा के हाँथ में एक पैकेट था। फिर हम कटरा के लिए चल दिए चार बज रहे थे। भइया को बाइक वापस करनी थी भाइय नेतराम चौराहे में ही मिल गए और मुझे आवाज दी अमीत अमीत मै अनसुना करना चाहता था पर कर नही पाया और वही भइया को बाइक दे दी।
एक ख़ामोशी के साथ मै और राधा रिक्से से वापस अल्लापुर आ रहे थे हम दोनों ही अब अपने रिश्ते में परिवर्तन को समझ रहे थे जैस एक दूसरे का चेहरा देखने में संकोच हो रहा हो राधा मेरी बांह में सर रखे हुये आँखे बंद किये थी हमारा फ्रेंडशिपडे हो चूका था चौराहे में रिक्से से उतर कर लॉज की तरफ चल दिए और ऐसा लग रहा था जैसे राधा का और मेरा कई जन्मों का साथ छूटने वाला हो तभी राधा बोली अमित लो ये तुम्हारे लिए है। इसकी क्या जरूरत थी राधा ने अपनी बड़ी बड़ी आँखे दिखाई और मै हमेशा की तरह चुप हो गया। हैप्पी फ्रेंडशिप डे राधा बोल कर भारी कदमो के साथ रूम की तरफ बढ़ गए।
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