गुरुवार, 7 अगस्त 2014

                                                      मै अंडे नही खाता इंदुमती


राधा (मेरी इंदुमती मै उसे इंदुमती ही बुलाता था) से मुलाक़ात का दिन तो नही याद पर मै बुक स्टाल के पास अमृता प्रीतम की एक किताब हाँथ मे लेकर देख रहा था जब पहली बार मेरी इंदुमती ने मुझसे कहा ये किताब मैंने भी पड़ी है अच्छी है। उसके पहले तक राधा शायद मुझे ना जानती रही हो पर मै जनता था की वो लाज के पास वाले मित्तल साब के घर मे रहती है । मुहल्ले की लड़कियों को लेकर लड़को मे तमाम तरह की सामान्य ज्ञान प्रतियोगिताए होती रहती है। उस अच्छी किताब के साथ ही इंदुमती से कुछ और देर बातें होती रही । अब अक्सर शाम को इंदुमती से मुलाक़ात होती और साथ मे ही चाय पी कर आते । जुलाई की एक शाम काफी बरिस हो रही थी। "का भइया चाय देई का जेका तुम इंतज़ार मा हो उ ना आई" भोलू चाय वाला बोला । चुप कर बे बारिश के वजह से बाइठे है पनिया निकल जाय तो चलन अऊर चाय फिर से बना बे सबेरे का काढ़ा न पेलो, बारिश धीरे धीरे कम हो रही थी मन कुछ भारी सा था जैसे कोई काम रह गया हो कुछ समझ भी नही आ रहा था । भोलू से एक "सिगरेट" मांगी दुकान खाली थी बरिस भी थी सोचा की तब तक सुलगा ही लेते है । उस समय तक सरकार ने धूम्रपान को लेकर कोई कानून नही बनाये थे पर मै हमेशा सार्वजनिक जगह पर सिगरेट पीने से बचता ही रहा, बारिश लगभग बंद ही हो गयी थी। यही कोई साड़े पाँच का वक़्त रहा होगा पर काले बादलों की वजह से लग रहा था साड़े सात बजे होंगे रूम जाने की सोच रहा था भोलू को पैसे दे कर दुकान के बाहर निकला तो इंदुमती गुलाबी रंग की छतरी लिए चली आ रही थी

तुम अभी हो मै सोच रही थी कि बारिश हो रही है तो ना आए होगे, चलो अंडे लेने है, आते ही इन्दुमति बोली, हूँ बस चाय के लिए निकला था, फिर कुछ देर बातें करते रहे उसे पीएमटी के लिए कोचिंग करनी थी उसी के बेहतर विकल्प को लेकर परेशान थी चाय पीने के बाद इंदुमती ने राजू से अंडे लिये और हम दोनों अपने अपने रूम आ गये, उस रात मै काफी परेशान था राधा को लेकर मेरे अंदर जो आकर्षण आ रहा था, उसे मै मान नही रहा था और फिर माना भी नही अगले कई दिनों तक बाहर ही नहीं निकला,

लगभग दस दिन हो गये थे बाहर निकले हुये इतवार का दिन था कहीं घूमने का मन कर रहा था । किसके साथ जाऊँ ये सवाल तब तक मुझे परेशान करता रहा है जब तक मैंने शादी नही की खैर उस वक़्त तो ये बड़ा सवाल था मेरे लिये मुझे दोस्तों की कमी हमेशा रही है, इलाहाबाद मे भी एक चितरंजन ही था जिसे दोस्त कहा जा सकता था। बाकी के तो सब उ उपाध्याय जैसे थे जो कुकर की सिटी बजी साले घुस आए कमरे मे खैर उपाध्याय की बात बाद मे करते है। तो उस दिन चितरंजन के घर पहुँच गए। घर के बाहर ही था की चितरंजन ने देखते ही कहा " कस मे जिंदा हो हम तो सोचे की मर गएव " नहीं यार थोड़ा तबीयत ठीक नही थी तभी कोचिंग भी नही आया कुछ चाय वाय भी है की बस बकैती करबों मे चितरंजन ने आवाज दी छुटकी दो चाय ले आना छुटकी प्रतापगढ़ के किसी गाँव की थी जिसे दहेज के लिये ससुराल वालों ने जला दिया था और बाद मे मायके वाले भी अपने साथ रखने को तैयार नही थे तभी चितरंजन के पिता जी जो पुलिस मे ओहदेदार थे छुटकी को अपने घर ले आये और वो इनके परिवार का एक सदस्य जैसे थी ।

चाय पीकर हम सिनेमा देखने के लिए कीटगंज विश्वामित्र पहुंचे वहाँ शाहरुख खान की जोश लगी थी अब देखना था तो देख लिया और फिल्म भी वैसी ही थी जैसा मैंने सोचा था एक इतवार और खराब कर लिया था हाँ एक गीत " हारे हारे हम तो दिल से हारे" कुछ अच्छा लगा था जो बाद मे भी मै सुना करता था । सिनेमा देखने के बाद मै चितरंजन को जार्जटाउन छोड़ कर सीधे अल्लापुर पहुंचा और भोलू की दुकान मे सिगरेट सुलगा कर बैठ गया भोलू गजल प्रेमी था सो उस वक़्त भी जगजीत सिंह की गजल "मेरी तरह तुम भी झूठे हो मुझसे बिछड़ के खुश रहते हो" चल रही थी तो वही बैठा रहा भोलू बोला का भइया कहाँ रहेन उ रोज पूछय आवत है, कौन मे मैने कहा, अरे वही जिन्हे रोज चाय पियावत हौ वही और कौन भोलू की बात सुनकर ऐसा लगा जैसे कुछ सदियों से खोई हुई चीज का पता बता दिया है । साड़े चार बज रहे थे मैंने भोलू से पूंछा कितनी देर आती है, बस आवेन वाली होइहे

शाम के पाँच बज रहे थे राधा राजू से अंडे ले रही थी और मै भोलू चाय वाले की दुकान के पास खड़े उसे देख रहा था अंडे लेने के बाद राधा भोलू की दुकान की तरफ को पलटी तो मै खड़ा था। मुझे देखते ही मेरी इंदुमती ऐसे चहकी जैसे किसी बच्चे का सबसे प्यारा खोया हुवा खिलौना मिल जाय, एक बार एक दम आक्रमक होते हुये बोली कहाँ थे इतने दिन और इतना बोलने के बाद इंदुमती सामान्य होने की कोसिस करने लगी, जैसे उसे मेरे होने ना होने का कोई फर्क ही नही पड़ता, मै भी बिना इंदुमती की बात जवाब दिये भोलू को दो चाय के लिए बोल दिया और दोनों वही बाहर बेंच पर बैठ गए,भोलू ने चाय दी चाय पीते पीते इंदुमती बोली की मैंने एक या दो बार भोलू से पूंछा भी की तुम नही आए जबकि मुझे पता था की इंदुमती मुझे रोज पूछने आती थी, उसने फिर पुंछा कहाँ थे बताया नही, "कुछ तबीयत ठीक नही थी तो रूम मे ही था निकला ही नही" मै बोला। इंदुमती कहने लगी की मुझे बताना चाहिए था ना मेरे लिए खाना ही भिजवा देती, "मै अंडे नही खाता इंदुमती" वो बोली मज़ाक मत करो जब दोस्ती की है तो क्या इतना भी नही और तुम भी तो मेरी कोचिंग के लिए कितने चक्कर लगा चुके हो तब इतना तो बनता है। मैंने कहा ठीक राजकुमारी इंदुमती जी आगे से बता दूंगा वो बोली कुछ और सब्जियाँ ले लेते है तुम्हारे लिए भी बना दूँगी, इसकी जरूरत नहीं है मै ठीक हूँ और आज सुबह की सब्जी रखी होगी उसी से काम चल जाएगा

हम अपने अपने रूम आ चुके थे । मै उस रात चैन से सो सका मै आसवस्त था की अब हम दोनों अच्छे दोस्त रहेगे । आगे से कई बार राधा अपने रूम से मेरे लिए खाना बना कर देती रही
"मै कभी उस रिश्ते को समझ नही पाया राधा भी कहती थी की रिश्तों को लेकर मेरी समझ कम है "
क्रमशः

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